भाजपा में छिड़ी कैसी तान, अब संगठन व विधायकों में बढ़ी खींचतान

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साभार पाल की चौपाल

– सरकार में भी बढ़ रहा है संगठन का प्रभाव

– कहीं ऐसा तो नही संगठन के प्रभाव को कम करने के लिए जान बुझकर साधे जा रहे है निशाने

प्रदेश भाजपा में सब – कुछ ठीक नहीं चल रहा है। सूबे में सरकार होने के बावजूद पार्टी में बिखराव होना शुरू हो गया है। पहले सरकार व संगठन के बीच टकराव की बातें उठ रही थी लेकिन अब संगठन व विधायक के बीच में ही तलवारे खींच गई है। इससे सरकार की ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय नेतृत्व की भी चिंता बढ़ गई है। ऐसा लग रहा है कि संगठन को जानबुझकर निशाने पर लिया जा रहा है। संगठन का पार्टी में ही नहीं बल्कि सरकार में भी प्रभाव बढ़ता जा रहा है। इसके कारण सरकार भी असहज महसूस कर रही है।

पूर्व में कांग्रेस व भाजपा की सरकारों में संगठन कभी इतना मजबूत नहीं रहा। संगठन में सरकार का दखल रहता था। संगठन के कमजोर होने के कारण ही प्रदेश में पिछले 30 वर्षों में कोई भी सरकार रिपीट नहीं हुई है। हालांकि पूर्व कांग्रेस सरकार के समय में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष सुखविन्द्र सुक्खू ने संगठन को सरकार के प्रभाव से बाहर निकाल कर अपने हिसाब से चलाने का प्रयास जरूर किया लेकिन ज्यादा कामयाबी नहीं मिली।

ज्वालामुखी के विधायक रमेश ध्वाला ने पिछले दिनों पार्टी के संगठन मंत्री पवन राणा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। यह पहला मौका नहीं था, इससे पूर्व भी ध्वाला ने संगठन मंत्री के खिलाफ ब्यानबाजी की थी। उस समय भी काफी बवाल हुआ था। इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ। प्रदेश भर से हो रहे विरोध व दवाब को देखते हुए उन्होंने अपने कथन के लिए माफी भी मांग ली।

सूत्रों की माने कुछ दिन पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से भाजपा के कांगड़ा विधायकों की हुई विशेष बैठक में कुछ विधायकों ने संगठन की कार्यप्रणाली और सम्बन्धित निर्वाचन क्षेत्र में हो रही अनदेखी को लेकर सवाल खड़े किए थे। विशेषकर मोर्चो के गठन में हुई अनदेखी को लेकर कुछ विधायकों अपनी नाराजगी व्यक्त की थी। इससे विधायक रमेश ध्वाला का भी हौसला मजबूत हुआ और बैठक खत्म समाप्त होते ही उन्होंने पार्टी के संगठन मंत्री के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया।

संगठन मंत्री पवन राणा ने पार्टी संगठन को मजबूत बनाया है, इसमें कोई दो राय नहीं है। त्रिदेव व पन्ना प्रमुख सम्मेलन उनके ही आइडिया थे जिसकी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व गृह मंत्री अमित शाह व भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने राष्ट्रीय स्तर पर हिमाचल भाजपा के इस माडल की जमकर तारीफ की थी। इसके बाद ही अन्य राज्यों में भी इस प्रकार के सम्मेलन शुरू हुए थे। उनके मार्गदर्शन में ही पार्टी ने आम कार्यकर्ता को भी पार्टी की गतिविधियों से जोड़ा था । जिसके कारण विधानसभा चुनाव में भाजपा की सत्ता वापसी सम्भव हुई थी। यही कारण है कि संगठन में संगठन मंत्री पवन राणा का प्रभाव बढ़ा है। पार्टी कार्यकर्ताओं का उनसे सीधा संपर्क है। पार्टी कार्यकर्ता अपने विधायक व सरकार के कामकाज की फीडबैक उन्हें सीधे दे रहे है। इसके कारण भी कुछ विधायकों को अभी से अपने टिकट कटने का डर सताने लग गया है। यही कारण है कि पार्टी के लोग ही सरकार व संगठन के बीच टकराव की भ्रामक प्रचार कर रहे है ताकि संगठन के प्रभाव को कुछ कम किया जा सके।

ज्वालामुखी के विधायक रमेश ध्वाला का कांगड़ा की राजनीति में बढ़ा नाम है। वर्ष 1998 में निर्दलीय चुनाव जीतकर कर पहली बार विधायक बने थे। उनके समर्थन से ही उस समय भाजपा की सरकार बनी थी। वह लगातार तीन चुनाव जीतने के बाद चौथा चुनाव हार गए थे लेकिन 2017 में हुए विस चुनाव जीतकर चौथी बार विधानसभा पहुंचे।

उनके संगठन मंत्री के खिलाफ मोर्चा खोलते ही सबसे पहले कांगड़ा के विधायक ही संगठन मंत्री के समर्थन और ध्वाला के खिलाफ खड़े हुए। पहली बार चुनाव जीतने वाले विधायकों ने उनके खिलाफ अनुशानात्क कार्रवाई की मांग कर दी ताकि संगठन की मेहरबानी से वर्ष 2022 में होने वाले विस चुनाव में उनका टिकट बचा रहे।

संगठन व विधायकों के बीच चल रही राजनीति आने वाले दिनों में किस करवट बैठती है, यह देखना दिलचस्प होगा।

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