ब्रिटिश काल में डगशाई जेल कैदियों के लिए कालापानी की सजा से कम नहीं थी। वर्ष 1920 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी इस जेल में एक दिन ठहरे थे। बताया जाता है कि आयरिश सैनिकों की होती आकस्मिक गिरफ्तारी ने महात्मा गांधी को डगशाई आने के लिए प्रेरित किया था ताकि वे यहां आकर इसका एकाएक आकलन कर सकें। महात्मा गांधी जिस कक्ष में ठहरे थे उसकी दीवार पर चरखा चलाते हुए उनकी एक बड़ी सी तस्वीर लगाई गई है।
अंग्रेजों के जुल्मों की कहानी को बयान कर रहीं जेल की दीवारें
जेल में बनी कालकोठरियां आज भी भयावह हैं। यहां पर अंधकूप अंधेरा है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता था कि अंग्रेजों के समय में इस जेल में किस कदर कैदियों को यातनाएं दी जाती थीं। यहां कैदियों को ऐसी-ऐसी यातनाएं दी जाती थीं, जिनके बारे में सुन कर ही रूह कांप जाती है।
इस जेल की दीवारें आज भी अंग्रेजों के जुल्मों की कहानी को बयान कर रही हैं। यहां पर कैदियों को बहुत यातनाएं दी जाती थीं। दंड देने के नए तरीके अपनाए जाते थे। शारीरिक तनाव के अलावा कभी-कभी कैदियों को अनुशासनहीनता का अनुभव महसूस करवाने के लिए अमानवीय दंड भी दिया जाता था। जेल में कैदियों के माथे पर गर्म सलाखों से नंबर दागा जाता था।
दोनों दरवाजों के बीच में खड़ा किया जाता था कैदी
बताया जाता है कि कैदी को कैद कक्ष के दोनों दरवाजों के बीच में खड़ा किया जाता था। दोनों दरवाजों पर ताला लगाने के पश्चात यह सुनिश्चित किया जाता था कि कैदी बिना आराम किए कई घंटे इन दोनों दरवाजों के बीच रहे। इस जेल में कैदियों का एक कार्ड भी बनता था। इस कार्ड में कैदी का पूरा ब्यौरा जिसमें उसका नाम, रंग, देश, अपराध, कारावास की अवधि और फैसले की तारीख लिखी जाती थी।
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