कोरोनाकाल में 2185 करोड़ कर्ज के तले दबे लघु उद्योग
कोरोना महामारी ने प्रदेश के लघु उद्योगों की कमर तोड़ कर रख दी है। बाजार में मंदी के चलते तैयार माल नहीं बिक रहा है। नए ऑर्डर आना भी बंद हो गए हैं। इससे लघु उद्योगों को बैंकों की किस्त, बिजली का बिल और कामगारों का वेतन देने में दिक्कत हो गई है। प्रदेश में 15 फीसदी उद्योग कोरोना संकट में बैंकों के डिफाल्टर हो गए हैं। इन लघु उद्योगों पर बैंकों का 2185 करोड़ रुपये कर्ज है। प्रदेश में 30 हजार लघु उद्योग हैं। कोरोनाकाल में सबसे अधिक लघु उद्योग प्रभावित हुए हैं।
लघु उद्योगों ने बैंकों से ऋण लेकर कारोबार शुरू किए, लेकिन पिछले डेढ़ साल से बाजार में मंदी आने से लघु उद्यमियों को चिंता हो गई है कि वे घर का खर्च चलाएं या बैंकों की किस्त जमा कराएं। पहले से की गई बचत अब घर चलाने के काम आ रही है। कई उद्यमियों की माली हालत खराब हो चुकी है। ऐसे उद्यमी अब रिश्तेदारों की मदद या बाजार से कर्ज लेकर काम चला रहे हैं। लघु उद्योग भारती के प्रदेश अध्यक्ष राजीव कांसल ने बताया कि प्रदेश सरकार लघु उद्योगों को बढ़ावा दे रही है। इसके चलते युवाओं ने बैंकों से ऋण लेकर रोजगार खोले हैं। ऐसे में अब सरकार को इन उद्योगों को जिंदा करने के लिए नई नीति तैयार करनी चाहिए।
बड़े औद्योगिक घरानों ने कच्चे माल के बढ़ा दिए दाम
फार्मा विंग के प्रदेश अध्यक्ष चिरंजीव ठाकुर ने बताया कि कोरोना काल में लघु उद्योगों को चारों ओर से मार पड़ रही है। कच्चा माल सप्लाई करने वाले बड़े औद्योगिक घरानों ने अचानक दाम बढ़ा दिए। इससे दोगुना पैसा जमा करने के बाद भी कच्चा माल नहीं मिल रहा है।
ऋण न चुकाने पर 15 फीसदी खाते एनपीए की श्रेणी में
प्रदेश स्तरीय बैंकर समिति के संयोजक पीके शर्मा ने बताया कि प्रदेश में विभिन्न बैंकों में उद्यमियों के 2,90,439 खाते हैं। इनमें विभिन्न बैंकों के तहत 13,697 करोड़ के लोन कारोबारियों को दिए हैं। कोरोना संक्रमण के चलते समय पर ऋण न चुकाने पर 15 फीसदी खाते एनपीए की श्रेणी में आ गए हैं और बैंकों को 2,185 करोड़ रुपये लेना बकाया है।