धूमल की हार का बदला लेने उतरे “रणजीत”, राणा हैट्रिक बनाने को आतुर

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हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में हमीरपुर की सुजानपुर सीट पर निगाहें टिकी हुई हैं। इसकी वजह है कि पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल का गृह निर्वाचन क्षेत्र है। साथ ही केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर की भी प्रतिष्ठा दांव पर है।दिलचस्प ये है कि 2017 में यहां के मतदाताओं ने भाजपा के सीएम कैंडिडेट को ही हराकर देश की राजनीति को अचंभित कर दिया था। 2017 में धूमल को हराने वाले राजेंद्र राणा कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे हैं, लेकिन भाजपा ने इस चुनाव में धूमल को राणा से बदला लेने का मौका नहीं दिया है। इस कारण धूमल के निष्ठावान सिपाही पूर्व सैनिक रणजीत सिंह  को भाजपा ने मैदान में उतारा है।पुनर्सीमांकन में बमसन का अधिकतर इलाका सुजानपुर निर्वाचन क्षेत्र में शामिल हुआ, ऐसा माना जाता है कि बमसन में प्रदेश के सबसे अधिक सैनिक व पूर्व फौजी हैं। सुजानपुर में इस समय 2186 सर्विस वोटर हैं, जो सीधे तौर पर सेना व अर्द्धसैनिक बलों से जुड़े हैं। इतनी ही संख्या में पूर्व सैनिकों के परिवार भी हो सकते हैं।
बड़ा सवाल ये है कि क्या भाजपा प्रत्याशी रंजीत सिंह द्वारा धूमल की हार का बदला लिया जा सकेगा या नहीं।

   

गौरतलब है कि भाजपा ने 2017 के चुनाव में धूमल की सीट को हमीरपुर से बदलकर सुजानपुर कर दिया था। चुनाव के अंतिम दौर में पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने धूमल को सिरमौर के राजगढ़ की जनसभा में सीएम कैंडिडेट घोषित किया था। चूंकि, धूमल का सुजानपुर गृह क्षेत्र था, साथ ही सीएम कैंडिडेट भी बन गए थे, लिहाजा मामूली अंतर से हार की बजाय बंपर जीत की प्रबल संभावनाएं जताई जा रही थी।  चुनाव में धूमल 1919 मतों के अंतर से हारे थे। नोटा सहित अन्य प्रत्याशियों को कुल 2,042 वोट प्राप्त हुए थे। सीपीएम के प्रत्याशी ने 1,023 मत प्राप्त किए थे। 2,042 में से 1,920 वोट धूमल को पड़ जाते तो समीकरण कुछ और होता।उल्लेखनीय है कि कांग्रेस के मौजूदा प्रत्याशी राजेंद्र राणा ने 2012 के चुनाव में बतौर आजाद उम्मीदवार एक शानदार जीत हासिल की थी। राणा के खिलाफ भाजपा तो फाइट में ही नजर नहीं आई थी, जबकि कांग्रेस की निकटतम प्रत्याशी अनीता वर्मा को 14,166 मतों के अंतर से हराकर 55.02 प्रतिशत का वोट शेयर प्राप्त किया था।

   

1998 में धूमल ने बमसन सीट से चुनाव लड़ा। मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने से पहले 60.34 फीसदी वोट लेकर विधायक बने थे। कांग्रेस 34.63 पर सिमट गई थी। 2003 में धूमल का ग्राफ बढ़कर 66.73 हो गया। धूमल ने कांग्रेस के वोट बैंक पर करीब 3.5 प्रतिशत की सेंध लगाई तो निर्दलीयों के खाते से भी 2.50 फीसदी वोट बटोर लिए। 2007 में धूमल ने जीत के अंतर का एक रिकॉर्ड ही कायम कर लिया। 26,537 वोटों से जीतने के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दूसरी बार काबिज हुए। 2007 के चुनाव में धूमल ने 35,404 मतों का बड़ा आंकड़ा हासिल किया था। कांग्रेस 9,047 पर अटक गई थी। अब ये धूमल की बैड लक थी या राणा की गुडलक, 2012 में धूमल हमीरपुर विधानसभा में शिफ्ट हो गए। हालांकि, वहां से भी जीते, लेकिन इधर राणा को पांव जमाने का मौका मिल गया। कांग्रेस 23.43 पर सिमटी तो भाजपा का ग्राफ शर्मनाक स्थिति में पहुंच गया।

Vishal Verma

20 वर्षों के अनुभव के बाद एक सपना अपना नाम अपना काम । कभी पीटीसी चैनल से शुरू किया काम, मोबाईल से text message के जरिये खबर भेजना उसके बाद प्रिंट मीडिया में काम करना। कभी उतार-चड़ाव के दौर फिर खबरें अभी तक तो कभी सूर्या चैनल के साथ काम करना। अभी भी उसके लिए काम करना लेकिन अपने साथियों के साथ third eye today की शुरुआत जिसमें जो सही लगे वो लिखना कोई दवाब नहीं जो सही वो दर्शकों तक