कुछ इस लिए भी खास बन गया पच्छाद चुनाव
पच्छाद उपचुनाव में कांग्रेस व भाजपा प्रत्याशी के सामने इतिहास बरकरार रखने व इतिहास रचने की चुनौती है। कांग्रेस प्रत्याशी गंगूराम मुसाफिर वर्ष 1982 से वर्ष 2007 के बीच में सात विधानसभा चुनाव में कभी भी पहली बार चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी से चुनाव नहीं हारे हैं। भाजपा प्रत्याशी रीना कश्यप के पास इस बार यह मिथक तोडऩे का मौका है क्योंकि प्रदेश में सरकार का उन्हें लाभ मिल सकता है। भाजपा ने गंगूराम मुसाफिर के खिलाफ जैसे ही प्रत्याशी को रिपीट किया वैसे ही वे हारना शुरू हो गए। वर्ष 2007 में पहला चुनाव हारने के बाद सुरेश कश्यप ने वर्ष 2012 व 2017 में हुए विस चुनाव में गंगूराम मुसाफिर को हराया।
भाजपा ने वर्ष 1982 से लेकर वर्ष 2007 के बीच कांग्रेस प्रत्याशी के खिलाफ हर बार नया प्रत्याशी मैदान में उतरा, जिसका कांग्रेस को हर बार लाभ मिलता रहा। वर्ष 1982 में गंगूराम मुसाफिर ने बतौर आजाद प्रत्याशी अपना पहला चुनाव लड़ा और भाजपा प्रत्याशी उछूबू राम को हराकर पहली बार विधानसभा पहुंचे। भाजपा ने 1985 में शिवराम को चुनावी मैदान में उतारा और उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसी तरह कांग्रेस प्रत्याशी गंगूराम मुसाफिर ने वर्ष 1990 में पहली बार चुनाव लड़ रहे भाजपा प्रत्याशी कालीदास को हराया। भाजपा ने वर्ष 1993 में राम प्रकाश को प्रत्याशी बनाया और उसे भी हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 1998 में विधानसभा चुनाव में गंगूराम मुसाफिर ने भाजपा प्रत्याशी कालीदास कश्यप को हराया।
वर्ष 2003 में गंगूराम मुसाफिर ने भाजपा प्रत्याशी राम प्रकाश को हराकर जीत का छक्का लगाया था। वर्ष 2007 में भाजपा ने लगातार 7वीं बार फिर टिकट बदला। भाजपा ने सुरेश कश्यप को चुनावी मैदान में उतारा। सुरेश कश्यप को पहले चुनाव में ही हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2012 में भाजपा ने पहली बार सुरेश कश्यप को अपना प्रत्याशी बरकरार रखा। इसका भाजपा को लाभ भी मिला। भाजपा जहां पहली बार पच्छाद से चुनाव जीतने में कामयाब रही, वहीं कांग्रेस प्रत्याशी गंगूराम मुसाफिर भी अपना पहला चुनाव हारे। वर्ष 2017 में भी गंगूराम मुसाफिर को हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2019 में हो रहा उपचुनाव अभी से रोचक हो गया है।
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