कफ सिरप मामले में हिमाचल की दवा कंपनियां निर्दोष, राज्य दवा नियंत्रक ने दी सफाई
मध्य प्रदेश के जिला छिंदवाड़ा में कथित रूप से कफ सिरप पीने से हुई बच्चों की मौत के मामले में हिमाचल प्रदेश की दवा कंपनियों का नाम आने पर राज्य औषधि नियंत्रण विभाग ने गहरी चिंता व्यक्त की है। राज्य दवा नियंत्रक डॉ. मनीष कपूर ने इस मामले में स्पष्ट रूप से कहा कि हिमाचल की किसी भी दवा निर्माण इकाई की कोई गलती या लापरवाही सामने नहीं आई है।
डॉ. कपूर ने कहा कि कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में हिमाचल प्रदेश की दवा कंपनियों को दोषी ठहराने की कोशिश की गई है, जो पूरी तरह से भ्रामक और तथ्यों से परे है। उन्होंने बताया कि राज्य में तैयार की जाने वाली सभी खांसी की दवाएं सख्त गुणवत्ता मानकों और औषधि नियंत्रण अधिनियम के तहत पूरी तरह परीक्षण के बाद ही बाजार में भेजी जाती हैं।
राज्य दवा नियंत्रक ने बताया कि जिस “नास्टरो-डीएस” (Nastro-DS) कफ सिरप का जिक्र मीडिया में किया गया है, वह हिमाचल की एक फार्मास्युटिकल कंपनी द्वारा सभी नियामकीय अनुमतियों के तहत निर्मित की गई थी। इस दवा की आपूर्ति केवल अधिकृत डिस्ट्रीब्यूटरों के माध्यम से ही की गई थी।
उन्होंने बताया कि घटना के बाद मध्य प्रदेश औषधि विभाग ने संबंधित दवा के नमूने लेकर जांच के लिए प्रयोगशाला भेजे थे। अब प्राप्त रिपोर्ट में यह पूरी तरह स्पष्ट हो गया है कि सिरप की गुणवत्ता निर्धारित मानकों के अनुरूप है और इसमें किसी भी प्रकार का हानिकारक रसायन या अशुद्धता नहीं पाई गई है।
डॉ. कपूर ने कहा कि हिमाचल प्रदेश की दवा कंपनियां विश्वसनीयता और गुणवत्ता के लिए जानी जाती हैं। प्रदेश में फार्मास्युटिकल उद्योग सख्त नियामक व्यवस्था के तहत काम करता है, जहां हर दवा निर्माण इकाई का नियमित रूप से निरीक्षण किया जाता है। उन्होंने जनता से अपील की कि वे किसी भी भ्रामक या अपुष्ट जानकारी पर विश्वास न करें और केवल आधिकारिक स्रोतों से पुष्टि की गई जानकारी को ही महत्व दें।