हमीरपुर ने दो बार सीएम दिया, इस बार सुक्खू पर निगाह

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हिमाचल प्रदेश की स‍ियासत में जिला हमीरपुर बेहद ही अहम और खास माना जाता है। इसका बड़ा कारण है कि ये प्रदेश की सियासत में बड़ा कद रखने वाले पूर्व मुख्यमंत्री प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल का गृह जिला है, साथ ही केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का संसदीय क्षेत्र भी है। इसलिए जिला हमीरपुर सियासी मायनों में भाजपा के लिए काफी खास है। पिछले चुनाव में जिला हमीरपुर की पांच सीटों में से तीन पर कांग्रेस का राज रहा, तो दो विधानसभा सीटों पर भाजपा का। इस बार जिला हमीरपुर में भाजपा की परफॉरमेंस भाजपा के दिग्गज नेताओं की साख का सवाल है तो कांग्रेस के लिए भी तख़्त और ताज बदलने के लिहाज़ से हमीरपुर अहम माना जा रहा है क्योंकि कांग्रेस में सीएम फेस की लिस्ट में शामिल सुखविंदर सिंह सुक्खू हमीरपुर जिला से आते है। बहरहाल हमीरपुर की पाँचों सीटों पर किसको सत्ता का सुख मिलता है, ये तो नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।  2017 के विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी खबर थी भाजपा के सीएम फेस प्रो प्रेम कुमार धूमल का चुनाव हारना। तब धूमल सुजानपुर से चुनाव लड़े थे और राजेंद्र राणा से हार गए थे। हालांकि इससे पिछले चुनाव धूमल हमीरपुर सीट से लड़े थे, लेकिन बावजूद इसके उनकी सीट बदलकर उन्हें सुजानपुर से चुनाव लड़वाया गया। ये भाजपा की रणनीति थी या माजरा कुछ और था, इसे लेकर अब तक कयासबाजी होती है। बहरहाल तब धूमल के हारने से हमीरपुर को तीसरी बार मुख्यमंत्री मिलते-मिलते रह गया। इस बार के चुनाव में बड़ी चर्चा रही प्रो प्रेम कुमार धूमल का चुनाव न लड़ना। धूमल साहब ने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया, कारण क्या रहे ये अंदर की बात है। बहरहाल धूमल चुनाव नहीं लड़े, एक जनसभा में अनुराग भावुक हो गए और पुरे चुनाव में धूमल निष्ठावानों के चेहरे उनके मैदान में न होने से लटके रहे। बावजूद इसके अगर भाजपा जिला हमीरपुर में अच्छा प्रदर्शन करती है, तो तारीफ तो करनी होगी।    

भोरंज विधानसभा क्षेत्र उन विधानसभा क्षेत्रों में शुमार है जहां दशकों से भाजपा का राज रहा है। भोरंज सीट कभी मेवा नाम से जानी जाती थी और परिसीमन बदलने के बाद इस क्षेत्र को भोरंज का नाम दिया गया। इस सीट का इतिहास रहा है कि यहाँ कांग्रेस वर्षों से अपना खाता नहीं खोल पाई है। 1985 में चौधरी धर्मचंद कांग्रेस के विधायक बने थे। तब से अब तक यहां भाजपा का एकछत्र राज रहा। 1990 से लेकर 2012 तक आईडी धीमान ने लगातार जीत दर्ज की। 2016 में धीमान के निधन के बाद यहां उपचुनाव हुआ और उनके बेटे डा.अनिल धीमान को चुनाव लड़वाया गया और लगभग एक साल वे विधायक रहे। पिछले विधानसभा चुनाव में अनिल धीमान को भाजपा ने टिकट नहीं दिया और यहां से महिला प्रत्याशी कमलेश कुमारी को मैदान में उतारा। कमलेश ने जीत दर्ज कर फिर भोरंज में कमल का फूल खिलाया। इस बार भाजपा ने कमलेश कुमारी का टिकट काटकर एक बार फिर धीमान परिवार को तवज्जो दी है और डॉ अनिल धीमान फिर मैदान में है। कांग्रेस से सुरेश कुमार मैदान में है। सुरेश कुमार तीन बार इस सीट पर चुनाव हार चुके है, लेकिन अगर इस बार परिवारवाद का मुद्दा चलता है तो सुरेश कुमार को इसका लाभ मिल सकता है। वहीं भाजपा के बागी पवन कुमार के मैदान में होने से भी कांग्रेस आशावान है। बहरहाल भोरंज में रिवाज बदलता है या बरकरार रहता है ये तो 8 दिसम्बर को ही पता चलेगा।

परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई सुजानपुर विधानसभा सीट का पिछले चुनाव बेहद रोचक रहा था। 2017 में इस सीट से भाजपा के मुख्यमंत्री पद के दावेदार प्रेम कुमार धूमल मैदान में थे और इस सीट के चुनाव परिणाम चौंकाने वाले रहे थे। दरअसल, तब मुख्यमंत्री पद के दावेदार प्रेम कुमार धूमल को राजेंद्र राणा से हार का सामना करना पड़ा था। इस बार फिर कांग्रेस से राजेंद्र  राणा मैदान में है, लेकिन भाजपा ने इस दफा कैप्टेन रंजीत सिंह राणा को मैदान में उतारा है। रंजीत सिंह राणा के लिए खुद धूमल मोर्चा संभालते हुए नज़र आये है। बेशक धूमल खुद चुनावी दंगल में नहीं उतरे है, लेकिन धूमल का अपना जनाधार है और जाहिर है कि इसका लाभ कैप्टेन को मिल सकता है। उधर, राजेंद्र राणा ने  भी दमखम से चुनाव लड़ा है और जाहिर है खुद धूमल को हारने के बाद तो उन्हें हल्का आंकना भूल हो सकती है। ऐसे में जाहिर है कांग्रेस इस सीट पर जीत को लेकर आश्वस्त है। पर खुद धूमल का यहाँ जमकर प्रचार करना क्या रंग लाएगा, ये भी देखना दिलचस्प होगा। ऐसे में जानकार मान रहे है कि इस बार सुजानपुर विधानसभा सीट पर नतीजे फिर चौंकाने वाले हो सकते है।

हमीरपुर विधानसभा सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती है। भाजपा के गठन के बाद इस विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने केवल दो बार जीत हासिल की है। 1995 के उपचुनाव में और 2003 के विधानसभा चुनाव में अनीता वर्मा ने ये सीट कांग्रेस की झोली में डाली थी। बाकी हर बार भाजपा ने ही जीत का परचम लहराया है। पिछले चुनाव में भाजपा के नरेंद्र ठाकुर ने 25,854 वोट हासिल कर कांग्रेस के कुलदीप सिंह पठानिया को 18,623 वोटों पर सिमटते हुए मात दी थी। अब भाजपा ने एक बार फ‍िर नरेंद्र ठाकुर पर भरोसा जताया है। जबकि कांग्रेस में अंत तक इस सीट पर टिकट को लेकर पेंच फंसा रहा। दरअसल इस बार निर्दलीय मैदान में रहे आशीष शर्मा के मैदान में होने से सियासी समीकरण पूरी तरह से बदल गए है। आशीष शर्मा पहले कांग्रेस में शामिल हुए और दो दिन बाद आशीष ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और फिर कांग्रेस ने पुष्पिंदर वर्मा पर विश्वास जताया। इस दफा हमीरपुर विधानसभा सीट पर फिर कमल खिलता है या कांग्रेस कोई कमाल करती है या फिर निर्दलीय बाज़ी मारते है, ये तो नतीजे आने के बाद ही तय होगा। फिलवक्त इतना जरूर कहा जा सकता है कि हमीरपुर सीट से पहली बार किसी निर्दलीय के चुनाव जीतने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता।  

बड़सर विधानसभा सीट वो सीट है जहाँ अक्सर बगावत के कारण राजनितिक दलों को हार का ही सामना करना पड़ा है। इस बार फिर समीकरण ऐसे ही बनते नज़र आ रहे है। इतिहास की बात करे तो बड़सर विधानसभा सीट कभी नदौनता नाम से जानी जाती थी। 1998 से 2007 तक इस सीट पर भाजपा का कब्ज़ा रहा है। 2012 में कांग्रेस के इंद्रदत्त लखनपाल ने लम्बे अंतराल के बाद इस सीट को कांग्रेस के नाम किय। 2017 में फिर इंद्रदत्त लखनपाल ने बड़सर विधानसभा सीट पर जीत हासिल की। इस बार फिर कांग्रेस से इंद्रदत्त लखनपाल मैदान में है। भाजपा से टिकट के प्रबल दावेदार माने जा रहे राकेश बबली के आकस्मिक निधन के बाद भाजपा ने पूर्व विधायक बलदेव शर्मा की पत्नी माया शर्मा को मैदान में उतारा है। जबकि भाजपा से टिकट की मांग कर रहे राकेश बबली के भाई संजीव बबली ने टिकट न मिलने पर इस बार निर्दलीय ताल ठोकी है। निसंदेह बलदेव शर्मा की क्षेत्र में पकड़ है जिसका लाभ माया शर्मा को मिल सकता है, लेकिन संजीव बबली के मैदान में होने से भाजपा को बगावत का सामना करना पड़ा है। ऐसे में जाहिर है कि इसका सीधा लाभ कांग्रेस के इंद्रदत्त लखनपाल को मिलता दिख रहा है। इस बार इंद्रदत्त लखनपाल जीत की हैट्रिक लगा पाते है या नहीं ये तो नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।

   नादौन विधानसभा सीट उन चुनिंदा विधानसभा सीटों में से एक है जहाँ के चुनावी नतीजों को लेकर इस बार प्रदेश में सबकी नज़रे टिकी हुई है। दरअसल, नादौन कांग्रेस के दिग्गज नेता सुखविंदर सिंह सुक्खू की विधानसभा सीट है। इस बार सुक्खू के समर्थक उन्हें भावी सीएम कैंडिडेट के तौर पर प्रोजेक्ट कर रहे है। भाजपा ने इस बार फिर विजय अग्निहोत्री को ही मैदान में उतारा है, जबकि आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी शैंकी ठुकराल ने भी पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ा है। पिछले कुछ चुनावी नतीजों पर नज़र डाले तो 2003 से अब तक सुखविंद्र सिंह सुक्खू जीत तीन बार जीत चुके है, केवल 2012 के विधानसभा चुनाव में विजय अग्निहोत्री ने सुखविंदर सिंह सुक्खू को 6750 मतों के अंतर  से हराया था। इस बार फिर सुक्खू जीत को लेकर आश्वस्त है। सनद रहे कि सुक्खू ने भावी सीएम के टैग के साथ चुनाव लड़ा है और  इसका लाभ भी उन्हें मिलता दिख रहा है। बहरहाल, जनदेश ईवीएम में कैद है और सभी अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे है।

Vishal Verma

20 वर्षों के अनुभव के बाद एक सपना अपना नाम अपना काम । कभी पीटीसी चैनल से शुरू किया काम, मोबाईल से text message के जरिये खबर भेजना उसके बाद प्रिंट मीडिया में काम करना। कभी उतार-चड़ाव के दौर फिर खबरें अभी तक तो कभी सूर्या चैनल के साथ काम करना। अभी भी उसके लिए काम करना लेकिन अपने साथियों के साथ third eye today की शुरुआत जिसमें जो सही लगे वो लिखना कोई दवाब नहीं जो सही वो दर्शकों तक