भाजपा में दबी हुई चिंगारी अब कभी भी लावा बनकर फूट सकती है। हिमाचल में लगातार 25 वर्षों तक सरकार बनाने का सपना देखने वाली भाजपा में सत्ता के ढाई वर्षों में अंतर्कलह सामने आने लगी है। ऐसा लग रहा है कि पार्टी में कुछ नेता एक – दूसरे से स्कोर सेट करने में लगे हुए है। भाजपा में अब प्रदेश अध्यक्ष की खाली हुई कुर्सी के लिए घमासान शुरू हो सकता है। कोरोना काल में सामने आए भ्र्रष्टाचार के दो मामलों ने सरकार की छवि को धूमिल किया है। आपदा की घड़ी में सरकार के दामन पर लगे यह दाग अच्छे नहीं है। स्थिति यह हो गई है सरकार को अब दो नहीं तीन मोर्चों पर जंग लड़नी पड़ रही है। पार्टी के अंदर ही दो मोर्चे खड़े हो गए है जबकि तीसरा मोर्चा विपक्ष है। पिछले कुछ समय से सरकार व संगठन के बीच बढ़ रही दूरियां जग जाहिर हो चुकी है। यही कारण है कि भाजपा के लोग ही सोशल मीडिया पर विपक्ष की भूमिका निभाने में लगे हुए है। इनमें बहुत से पुराने नेता व कार्यकर्ता है जो किसी समय पार्टी के फ्रंट लाइनर होते थे लेकिन सरकार व संगठन की अनदेखी के कारण सरकार के खिलाफ बोलने या लिखने का कोई भी मौका नहीं छोड़ रहे है।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के पद से डा. राजीव बिन्दल के त्यागपत्र के बाद संगठन व सरकार के बीच फासला कम नहीं और बढ़ने की उम्मीद है। पत्र बम्ब से भाजपा में अंतर्कलह की शुरूआत हुई थी। इस पत्रबम्ब ने जिला कांगड़ा की राजनीति में हलचल हो गई थी। पार्टी के ही वरिष्ठ नेता पर ही पत्र बम्ब जारी करने के आरोप लगाए थे। इसी तरह जिला कांगड़ा के एक विधायक ने पार्टी के ही वरिष्ठ नेता के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। हालांकि बड़े नेताओं की मध्यस्थता के बाद यह मामला शांत हो गया था। ऐसा नहीं था कि पार्टी सब कु्छ ठीक चल रहा था। पार्टी के कुछ विधायक मंत्री की चाह में सरकार के साथ ही खड़े नजर आ रहे थे। प्रदेश में मंत्री के तीन पद खाली चले हुए है। इनमें से दो पद तो पिछले एक वर्ष व एक पद पिछले चार महीनों से खाली है। मंत्री की रेस में आगे चल रहे विधायकों का भी अब सब्र का बांध टूटना शुरू हो गया है। यही कारण है कि पिछले दिनों भाजपा के करीब 8 विधायकों ने विपक्ष के साथ विधानसभा अध्यक्ष से मिले व कोरोना पर विशेष सत्र बुलाने का आग्रह किया। इनमें वे विधायक भी शामिल थे जिन्हें मंत्री की रेस में सबसे आगे माना जा रहा था। प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते डा. राजीव बिन्दल ने इस मामले का कड़ा संज्ञान लिया था। उनकी सख्त तेवरों ने ही इन सभी विधायकों को सरकार के पाले में वापिस आने के लिए मजबूर कर दिया। इसके बाद सरकार ने भी राहत की सांस ली। इसी बीच स्वास्थ्य निदेशक की भ्रष्टाचार की ऑडियो जारी हो गई और भाजपा के बडे़ नेता का नाम आने पर ही डा.राजीव बिन्दल ने नैतिकता के आधार पर अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया। यह अपने आप में पहला ऐसा मामला था जिसकी जांच में अभी बड़े नेता का नाम भी नहीं आया और त्याग पत्र भी हो गया । देश में ऐसे कई ऐसे उदहारण है जब जांच में नाम आने और गिरफ्तारी की तलवार लटकने पर भी अपने पदों से त्यागपत्र देने में आनाकानी करते रहते है।
असंतुष्ट होते जा रहे पार्टी कार्यकर्ताओं को पार्टी के अंदर तरजीह देनी शुरू नहीं की तो आने वाले समय में सरकार व पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती है। पार्टी का सबसे मजबूत एकजुट व शांत है। वे संगठन व सरकार के काम काज पर पैनी नजर रखे हुए है। अध्यक्ष पद को लेकर अब यह गुट सक्रिय हो सकता है।यदि ऐसा हुआ तो पार्टी के अंदर नए समीकरण पैदा हो सकते है।
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