बघाट एक स्वर्णिम गाथा, क्या है खास जानिए अजय ठाकुर से

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बघाट अर्थात बहु घाट एक पहाड़ी शब्द जिसमें घाट का मतलब छोटी पहाड़ियों को जोड़ने वाला रास्ता । भौगोलिक रूप से बहुत से घाट होने के कारण सोलन शहर के आस-पास के क्षेत्र को पूर्व में बघाट नाम से जाना जाता था। इस क्षेत्र की अपनी एक संस्कृति रही है जिसे बघाटी परंपरा के नाम से पहचान मिली । आज भी बघाटी भाषा,खान पान , वेशभूषा और स्थानीय पर्व जीवंत बने हुए हैं।

ऐतिहासिक रूप से बघाट एक रियासत थी जिसके प्रथम राजा पंवर राजवंश के बसंत पाल को माना जाता है।एक रोचक तथ्य के अनुसार 1849 ईसवी में बघाट राजा विजय सिंह के निसंतान मृत्यु होने पर इस रियासत को लार्ड डलहौजी की विलय नीति के कारण अंग्रेजी हुकूमत में मिला दिया गया। पूरे भारतवर्ष में मात्र सात रियासतें इस नीति के अंतर्गत ब्रिटिश साम्राज्य में मिलायी गई थीं जिसमें बघाट के अतिरिक्त सतारा, जैतपुर, उदयपुर, झांसी, नागपुर आरकोट थीं। झांसी रियासत की रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई तो इसी नीति के विरोध में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ी थी। परंतु व बघाट व  सतारा (महाराष्ट्र) ही दो ऐसी रियासतें थी जो ब्रिटिश हुकूमत ने उनकी राजवंशों को वापिस की थी। बघाट के राजा विजय सिंह की मृत्यु के बाद उनके चचेरे भाई उमेद सिंह ने इंग्लैंड में प्राइवी काउंसिल के समक्ष तथ्यों के साथ अपने उत्तराधिकार का पक्ष रखा और अपनी मृत्यु के कुछ घंटे पूर्व सन 1862 ईस्वी में उन्हें यह शुभ सूचना मिली कि उनका राजवंश पुनः स्थापित किया जाता है।

राजा विजय सिंह के बाद उनके अवयस्क पुत्र दिलीप सिंह को राजा घोषित किया गया। इन्हीं दिलीप सिंह के नाम पर सोलन का राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक छात्र पाठशाला पिछले 110 वर्षों से लाखों छात्रों को शिक्षा प्रदान कर चुका है। उनके बाद राजा दुर्गा सिंह बघाट के अंतिम शासक बने। स्वतंत्रता के उपरांत जब 562 रियासतों के देश के साथ मिलाने का अभियान चल रहा था तब राजा दुर्गा सिंह ने 26 से 28 जनवरी 1948 को पहाड़ी रियासतों के राजाओं का सम्मेलन सोलन में बुलाकर उसकी अध्यक्षता की तथा यह निर्णय लिया कि भौगोलिक व सांस्कृतिक रूप से यह विशेष क्षेत्र हिमाचल प्रदेश के नाम से जाना जाए। उन्होंने इन पहाड़ी रियासतों का पंजाब में  मिलाने का पुरजोर विरोध किया व भारत के तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल के समक्ष दिल्ली में आग्रह किया कि उनके खजाने में ₹600000 हैं और वे सारा खजाना देश के लिए दे रहे हैं तथा बदले में उन्हें कुछ नहीं चाहिए सिर्फ पहाड़ी सभ्यता व संस्कृति के नाम पर हिमाचल प्रदेश राज्य का गठन किया जाए। बाद में इसी बात को डॉ वाईएस परमार ने राजनीतिक तरीके से उठाया। अंततोगत्वा 15 अप्रैल 1948 ईस्वी को हिमाचल प्रदेश को ग श्रेणी का राज्य बनाया गया।

 बघाट 1 सितंबर 1972 को सोलन जिला में विलय हो गया। आज 50 वर्षों के बाद बघाट एक शब्द हो सकता है परंतु इस शब्द के पीछे एक स्वर्णिम विरासत छिपी हुई है इसी विरासत को सोलन का प्रतिष्ठित बघाट बैंक संजोए हुए हैं जिसकी जिसकी स्थापना 7 सितंबर 1970 को महापुरुष राजा दुर्गा सिंह द्वारा 10 शेयरधारकों को मिलाकर की गई थी। आज इस बैंक में लगभग 10000 शेयर धारक है , प्रदेश के 5 जिलों में 11 शाखाएं कार्यरत है और कुल ग्राहकों की संख्या एक लाख के करीब है। यह बैंक बघाट विरासत को पूरे प्रदेश में पहुंचाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। बघाट के लिए यह अत्यंत गौरव का विषय है।

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