प्रदेश सरकार ने कर्ज के लिए केंद्र सरकार से मांगी अप्रूवल
हिमाचल प्रदेश सरकार ने इस साल लिए जाने वाले कर्ज के लिए केंद्र सरकार से अप्रूवल मांगी है। अभी तक केंद्रीय वित्त मंत्रालय की ओर से अप्रूवल नहीं मिली है, लेकिन हिमाचल की ओर से जो प्रस्ताव गया है उसके मुताबिक राज्य सरकार इस साल साढ़े 14 हजार करोड़ रुपये की लिमिट चाहती है। उसने पिछले साल लिमिट से कम कर्ज लिया था लिहाजा वो पैसा भी इस साल जुड़ सकता है। इस साल सरकार का सबसे अधिक खर्च कर्मचारियों के नए वेतनमान और उनको दिए जाने वाले एरियर पर होगा। इसके साथ पेंशनरों का खर्चा भी है, वहीं पुरानी देनदारियां भी चुकता की जानी है। साढ़े 14 हजार करोड़ ग्रॉस बोरेाइंग है, जिसमें से लगभग 6 हजार करोड़ की पुरानी देनदारी भी चुकता की जानी है। फिर चाहे वह मूलधन होगा या फिर उसका ब्याज।
सरकार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से हर साल जो लोन उठाती है उसे पांच साल या 10 साल के लिए लिया जाता है। ऐसे ही हर साल किसी न किसी लोन की वापसी सिर पर खड़ी रहती है। उस राशि को चुकता करने के अलावा लोन पर ब्याज की अदायगी भी करनी पड़ती है और 6 हजार करोड़ के करीब की सालाना वापसी रहती है। ऐसे में प्रदेश सरकार ने इस साल के लिए साढ़े 14 हजार करोड़ रुपये की लिमिट मांगी है जिसमें से 6 हजार करोड़ की वापसी रहेगी और शेष राशि में से कर्मचारियों व पेंशनरों के वेतन भत्तों की अदायगी के अलावा एरियर भी देना है।
प्रदेश सरकार पर 11 हजार करोड़ रुपये के आसपास का एरियर खड़ा है, जिसे एक साथ चुकता करना आसान नहीं है। न ही सरकार एक साथ यह एरियर चुकता करेगी, बल्कि किश्तों में इसकी अदायगी की जाएगी। अभी फैसला लिया जाना है कि कर्मचारियों व पैंशनरों को कितने प्रतिशत की कितनी किश्तें दी जाएंगी। राज्य पर 64 हजार करोड़ रूपए के आसपास का कुल ऋण हो चुका है और इस ऋण में लगातार इजाफा हो रहा है। इसकी अदायगी भी की जा रही है मगर अदायगी भी नया ऋण लेकर ही होती है। ऐसे में आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और प्रदेश सरकार लगातार कर्ज के दलदल में धंसती जा रही है।
फिलहाल केंद्रीय वित्त मंत्रालय से प्रदेश के कर्ज की लिमिट जीडीपी के आधार पर बढ़ाए जाने की मांग की गई है, जिसकी अप्रूवल अभी नहीं मिली है। जैसे ही अप्रूवल मिलती है तो प्रदेश सरकार कर्ज लेगी और यहां पर कर्मचारियों व पेंशनरों को एरियर की पहली किश्त की अदायगी कर दी जाएगी। पिछले साल कर्ज की लिमिट 7200 करोड़ रुपये की थी, जिसमें 3 हजार करोड़ कम लिया गया था। उसे अब साथ में जोड़कर साढ़े 14 हजार करोड़ की लिमिट करने की मांग की गई है।
