केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में मोदी सरकार ने 5 नए जिले बनाने की घोषणा की है. यह फैसला लद्दाख में हो रहे विरोध प्रदर्शन और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के बीच लिया गया है. लद्दाख में नए जिले बनाने की घोषणा खुद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने की है.शाह के मुताबिक लद्दाख में 5 नए जिले जास्कर, द्रास, शाम, नुब्रा और चांगथांग बनाए जाएंगे. 2019 में जम्मू-कश्मीर से अलग होकर गठित लद्दाख में पहले से ही कारगिल और लेह जिले आते हैं.
ऐसे में सवाल उठता है कि लद्दाख में 5 नए जिले बनाने की घोषणा क्यों की गई है?
लद्दाख में 5 जिले क्यों बनाए गए?
1. प्रशासनिक शक्तियों का विभाजन
लद्दाख में लंबे वक्त से शक्तियों के विभाजन पर संग्राम छिड़ा हुआ है. वहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासनिक कामकाज की वजह से उनकी जिंदगी की मुश्किलें बढ़ गई है. इसको लेकर लद्दाख में आंदोलन भी हो रहे हैं. लोग सत्ता का विकेंद्रीकरण करने की मांग कर रहे हैं.
लद्दाख के अधीन अभी दो जिले लेह और कारगिल है. सरकार ने 5 नए जिले की घोषणा कर प्रशासनिक पहुंच को गांव-गांव तक पहुंचाने की कवायद की है. लद्दाख के बीजेपी से पूर्व सांसद जयमांग नमगयाल कहते हैं- यह ऐतिहासिक फैसला है. हमने इस विषय को 3 बार संसद में उठाया था.
नमगयाल आगे कहते हैं- इसके लागू होने से प्रशासन तक गांव के लोगों की पहुंच आसान हो जाएगी. लद्दाख पहाड़ी जिला है और यहां अगर गांव से जिला मुख्यालय की दूरी ज्यादा हो तो लोगों के लिए वहां पहु्ंचना मुश्किल हो जाता है.
भौगोलिक दृष्टिकोण से लेह जिला देश का दूसरा सबसे बड़ा जिला है. इसका कुल क्षेत्रफल 45,110 वर्ग किमी है. लेह प्रशासन के मुताबिक इस जिले के अधीन नुब्रा , दुरबुक (डरबोक), खलात्से, लेह , खारू , लिकिर , न्योमा सब डिविजन है.
2. जनजातीय को अधिकार देने का संकेत
लद्दाख में जनजातीय समूह अपने जल, जंगल और जमीन को संरक्षित रखने के लिए शेड्यूल-6 के तहत प्रशासनिक अधिकार देने की मांग रहे हैं. संविधान के अनुच्छेद 244 और 251 में इसका जिक्र किया गया है. इसके मुताबिक जनजातीय बाहुल्य क्षेत्रों में स्वायत्त जिला परिषद की स्थापना की जाती है.
इन परिषदों को सरकार की तरफ से विधायी, न्यायिक और कार्यकारी शक्तियां दी जाती है. इसके जरिए परिषद जनजातीय समुदाय के उत्थान और उनके अधिकार की रक्षा का काम करती है.
लद्दाख में अभी सिर्फ 2 ही जिले थे और वहां पर स्वायत्त परिषद की मांग को मान पाना मुश्किल था. वजह लद्दाख से लगे चीन और पाकिस्तान का बॉर्डर का होना है.
अब 5 जिले की घोषणा के बाद कहा जा रहा है कि लद्दाख के कुछ जिलों को या तो शेड्यूल-5 या शेड्यूल-6 के तहत अधिकार दिए जा सकते हैं.
3. जम्मू-कश्मीर को लेकर भी संकेत
केंद्र सरकार ने लद्दाख में 5 जिले बनाने की घोषणा जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के बीच किया है. ऐसे में केंद्र की इस घोषणा को जम्मू-कश्मीर के लिए भी एक संकेत के रूप में देखा जा रहा है. जम्मू-कश्मीर में पूर्ण राज्य का मुद्दा गर्म है.
केंद्र की सरकार ने वादा किया था कि चुनाव बाद ही इस पर फैसला करेंगे. ऐसे में कहा जा रहा है कि केंद्र ने लद्दाख के जरिए यह संकेत देने की कोशिश की है कि वे अपनी मांगों पर गंभीर रहती है. बीजेपी की सरकार यह भी संदेश देना चाह रही है कि वो जो कहती है, उसे अवश्य पूरी करती है.
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा की 90 सीटों के लिए 1 अक्टूबर तक चुनाव प्रस्तावित है. यहां बीजेपी का सीधा मुकाबला इंडिया गठबंधन के दलों से है.
लद्दाख में इन मांगों को लेकर प्रदर्शन
स्थानीय स्तर पर लद्दाख में 4 मांगों को लेकर लंबे वक्त से सरकार के खिलाफ प्रदर्शन जारी है. इनमें पहली बड़ी मांग राज्य का दर्जा है. स्थानीय लोगों का कहना है कि केंद्रशासित प्रदेश होने की वजह से उनकी राजनीतिक और प्रशासनिक हिस्सेदारी कम हो गई है.
दूसरी मांग लद्दाख को संविधान के छठे शेड्यूल में शामिल किए जाने की है. तीसरी मांग विकास काम के ठेकेदारी को लेकर है. इसके तहत लद्दाख के विकास की ठेकेदारी उन्हें ही मिले, जो यहां के मूल निवासी हैं.
चौथी मांग लद्दाख में शक्ति विभाजन की है. मार्च 2024 में केंद्र सरकार ने इन मांगों पर वहां के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की थी, लेकिन तब बात नहीं बन पाई. इसका नतीजा लोकसभा चुनाव में देखने को मिला.
बीजेपी के प्रत्याशी लद्दाख में तीसरे नंबर पर पहुंच गए, जबकि 2014 और 2019 में उसे यहां जीत मिली थी.
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