एक दंपति ने रिसर्च के लिए दान कर दिया दिव्यांग बेटे का शव

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हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के एक दंपति ने अनूठी मिसाल पेश की है। दंपति ने पत्थर दिल बनकर अपने कलेजे के टुकड़े के शव का मोह छोड़कर उसकी देह को मेडिकल कॉलेज में रिसर्च के लिए दान कर दिया। दम्पति ने 16 साल के दिव्यांग बेटे का मौत के बाद उसका अंतिम संस्कार नहीं किया। इसके पीछे दम्पति की यह सोच थी कि भविष्य में किसी और के बच्चे के साथ ऐसा न हो।

दरअसल, मामला मंडी शहर के साथ लगते चडयारा गांव का है। 2007 में बलविंदर और मीनाक्षी के घर जन्मे “वंश” को जन्म के साथ ही कॉम्प्लिकेशन हो गई थी। हर जगह उपचार करवाने के बाद भी वंश की बीमारी का कोई पता नहीं चला। समय के साथ मालूम हुआ कि वंश न तो चल-फिर सकता है और न ही बोल सकता है। परिवार ने अपनी तरफ से वंश के पालन-पोषण में कोई कमी नहीं छोड़ी। दिवंग्त वंश के पिता बलविंदर पेशे से शिक्षक हैं। उन्हें डॉक्टरों ने पहले ही बताया था कि वंश कभी भी दुनिया को अलविदा कह सकता है। ऐसे में बलविंदर और उनकी पत्नी मीनाक्षी ने पहले ही यह तय कर लिया था कि वे अपने बेटे के शव को मेडिकल रिसर्च के लिए दान कर देंगे। ताकि डॉक्टर रिसर्च कर यह पता लगा सकें कि वंश को क्या दिक्कत थी और दूसरे बच्चों को ऐसी परेशानी न झेलनी पड़े।

Vishal Verma

20 वर्षों के अनुभव के बाद एक सपना अपना नाम अपना काम । कभी पीटीसी चैनल से शुरू किया काम, मोबाईल से text message के जरिये खबर भेजना उसके बाद प्रिंट मीडिया में काम करना। कभी उतार-चड़ाव के दौर फिर खबरें अभी तक तो कभी सूर्या चैनल के साथ काम करना। अभी भी उसके लिए काम करना लेकिन अपने साथियों के साथ third eye today की शुरुआत जिसमें जो सही लगे वो लिखना कोई दवाब नहीं जो सही वो दर्शकों तक