
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को हिमाचल प्रदेश के लाखों सेब उत्पादकों को वन भूमि पर अतिक्रमण कर लगाए गए फलदार बागों को हटाने के हिमाचल हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह हाशिए पर पड़े वर्ग और भूमिहीन लोगों की मदद के लिए केंद्र सरकार के सामने एक प्रस्ताव रखे।मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश को गंभीर परिणाम वाला बताया। खंडपीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने आदेश पारित करने में गलती की जिसके बहुत गंभीर परिणाम होंगे और यह समाज के हाशिए पर पड़े वर्ग और क्षेत्र के भूमिहीन लोगों को प्रभावित करेगा।
पीठ ने स्पष्ट किया कि यह मुद्दा नीतिगत दायरे में आता है और हाईकोर्ट को ऐसा आदेश पारित नहीं करना चाहिए था जो फलदार पेड़ों को काटने को सुनिश्चित करे।हालांकि, शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि वन भूमि पर अतिक्रमण के संबंध में राज्य सरकार की ओर से कार्रवाई की जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार कल्याणकारी राज्य के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए एक प्रस्ताव तैयार कर सकती है और आवश्यक अनुपालन के लिए इसे केंद्र के समक्ष रख सकती है। शीर्ष अदालत राज्य सरकार की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। इसके साथ ही, पूर्व उप महापौर टिकेंद्र सिंह पंवर की याचिका पर भी सुनवाई की गई।
सुप्रीम कोर्ट ने पंवार और राय की याचिका पर हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी, जिन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि इस फैसले से, खासकर मॉनसून के मौसम में, लाखों लोग प्रभावित होंगे।
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