DGP v/s SP: कानून के पहरेदारों में “अहं” की कलह: विभाग में पनपता “अविश्वास
हिमाचल प्रदेश पुलिस विभाग में एसपी संजीव गांधी और पुलिस महानिदेशक अतुल वर्मा के बीच टकराव चिंता का विषय है। यह केवल आपसी मतभेद नहीं, बल्कि पूरे पुलिस तंत्र की विश्वसनीयता पर सवाल है। पुलिस जैसा अनुशासित विभाग यदि सार्वजनिक मंच पर ऐसे विवादों का केंद्र बने, तो आम जनता का विश्वास डगमगा जाता है। संजीव गांधी एक तेज तर्रार अधिकारी माने जाते हैं। वहीं, अतुल वर्मा के नेतृत्व और अनुभव पर भी संदेह नहीं किया जा सकता।
अगर मतभेद हैं भी, तो उन्हें शांतिपूर्वक सुलझाना चाहिए। यह टकराव केवल व्यक्तिगत अहं नहीं, बल्कि विभागीय संवादहीनता की ओर भी संकेत करता है। राज्य सरकार को इस मामले में निष्पक्ष दखल देना चाहिए। समाधान ऐसा हो, जो विभाग की गरिमा बनाए रखे। भविष्य में ऐसे विवाद न हों, इसके लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश और संवाद की व्यवस्था जरूरी है।यह सवाल केवल दो अफसरों का नहीं, पूरी व्यवस्था का है। पुलिस विभाग को अनुशासन और एकजुटता का उदाहरण बनाना होगा। वरना सबसे बड़ा नुकसान उस जनता को होगा, जिसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी इसी तंत्र पर है।
इस विवाद ने अब न्यायिक रूप भी ले लिया है। हाईकोर्ट को टिप्पणी करनी पड़ी कि “अधिकारियों के बीच कुछ व्यक्तिगत द्वेष है, इसलिए जांच सीबीआई को दी जाए।” यह टिप्पणी बताती है कि मामला कितना गंभीर है। न्यायपालिका का सीधा हस्तक्षेप और सीबीआई जांच की मांग, पुलिस तंत्र में पारदर्शिता की कमी का संकेत है।
इसी विवाद से जुड़ा है HPPCL के महाप्रबंधक विमल नेगी की रहस्यमय मौत का मामला। इस मामले में एसपी संजीव गांधी के नेतृत्व वाली SIT जांच कर रही थी। हाईकोर्ट ने SIT की निष्पक्षता पर संदेह जताया है। जब खुद DGP को जांच पर भरोसा नहीं, तो आम जनता कैसे भरोसा करे?
यह सब राज्य की पुलिस व्यवस्था में संवाद, पारदर्शिता और जवाबदेही के अभाव को उजागर करता है। सरकार को चाहिए कि वह इस मामले को मिसाल बनाए। न केवल निष्पक्ष जांच हो, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया जाए कि भविष्य में ऐसे हालात फिर न हों। जब न्यायपालिका को कहना पड़े कि “अब जांच CBI ही करेगी”, तो यह सिर्फ एक अफसर नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल बन जाता है।अदालत की कार्यवाही का वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड होना सामान्य नहीं हो सकता।