वीर साहिबजादों का बलिदान धर्म, संस्कृति और राष्ट्र के लिए अमर प्रेरणा : सुरेश कश्यप
शिमला, धर्म एवं संस्कृति की रक्षा हेतु अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले गुरु श्री गोबिंद सिंह जी के साहिबजादों के बलिदान दिवस वीर बाल दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं सांसद सुरेश कश्यप मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता जिला अध्यक्ष केशव चौहान ने की, जबकि कार्यक्रम संयोजक परमजीत चड्ढा रहे।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सुरेश कश्यप ने कहा, “वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह।” उन्होंने कहा कि वीर साहिबजादों और दशम पिता गुरु गोबिंद सिंह जी को स्मरण करते हुए मन शोक से भी भर जाता है और गर्व की अनुभूति भी करता है। जिन बच्चों ने जीवन को ठीक से देखा भी नहीं था, उन्हें अत्यंत क्रूरता से शहीद कर दिया गया, लेकिन उन्होंने धर्म के सामने कभी सिर नहीं झुकाया।
सुरेश कश्यप ने माता गुजरी जी के त्याग, धैर्य और संस्कारों को नमन करते हुए कहा कि बाबा जोरावर सिंह मात्र 9 वर्ष और बाबा फतेह सिंह मात्र 7 वर्ष की आयु में लोभ, भय और दबाव के बावजूद धर्म से विचलित नहीं हुए और सिंहों की तरह मृत्यु को स्वीकार किया। यह माता गुजरी जी द्वारा दिए गए संस्कारों का ही परिणाम था कि साहिबजादों में गुरुओं के मूल्य कूट-कूट कर भरे थे।
उन्होंने कहा कि विश्व इतिहास में ऐसा उदाहरण मिलना दुर्लभ है, जहां किसी पिता ने धर्म की रक्षा के लिए स्वयं, अपनी माता और अपने चारों पुत्रों का बलिदान दिया हो। इसी कारण गुरु गोबिंद सिंह जी को “सरबंस दानी” कहा जाता है। यह कोई सरकारी उपाधि नहीं, बल्कि देश की जनता द्वारा दिया गया सर्वोच्च सम्मान है।
सुरेश कश्यप ने नवम गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान को स्मरण करते हुए कहा कि कश्मीर के पंडितों की रक्षा के लिए उन्होंने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। आठ वर्ष की आयु में बालक गोबिंद राय द्वारा अपने पिता से बलिदान देने का आग्रह भारतीय इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है। दिल्ली का सीसगंज गुरुद्वारा आज भी देशभक्तों और श्रद्धालुओं के लिए सबसे बड़ा तीर्थ है।
उन्होंने कहा कि यदि नवम गुरु और दशम पिता न होते तो आज भारत में न हिंदू बचता और न सिख, हमारी धर्म-संस्कृति का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता। इसलिए गुरु तेग बहादुर जी को “हिंद की चादर” कहा गया। दशम पिता में वीरता और बलिदान दोनों गुण थे। चमकौर साहिब में युद्ध के दौरान उन्होंने अपने पुत्रों को हंसते-हंसते धर्म के लिए बलिदान हेतु भेजा, यह अद्वितीय साहस और समर्पण का उदाहरण है।
उन्होंने कहा कि जब चारों साहिबजादों की शहादत का समाचार आया और प्रश्न उठा कि अब क्या बचा, तब गुरु गोबिंद सिंह जी के शब्द “चार मुए तो क्या हुआ, जीवित कई हजार” त्याग और दृढ़ संकल्प की पराकाष्ठा को दर्शाते हैं।
कार्यक्रम में सुरेश भारद्वाज, कर्ण नंदा, कमलजीत सूद, संजय सूद, संजीव कटवाल, संजीव दृष्टा, रमा ठाकुर, गौरव कश्यप, विजय परमार सहित अनेक वरिष्ठ नेता, पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता उपस्थित रहे।
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