दो बार कोरोना संक्रमित होने पर भी नहीं मोड़ा कर्तव्य से मुंह, डा. सुशील लगातार दे रहे अस्पताल में ड्यूटी
सोच सकारात्मक हो तो बड़ी से बड़ी कठिनाई भी आपको अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटने देती है। श्री लाल बहादुर शास्त्री राजकीय मेडिकल कालेज नेरचौक के एनेस्थीसिया विशेषज्ञ डा. सुशील कुमार ने यही साबित किया है। दो बार कोरोना संक्रमित होने के बावजूद उन्होंने अपने कर्तव्य से मुंह नहीं मोड़ा। वह लगातार ड्यूटी दे रहे हैं और कोई दिक्कत होने पर वह सातों दिन आन काल मौजूद रहते हैं।
लाहुल स्पीति के रोलिंग गांव के रहने वाले 37 वर्षीय डा. सुशील कुमार 20 से अधिक आपरेशन में शामिल रहे जिनमें 15 सिजेरियन थे। डा. सुशील कुमार की जिम्मेदारी उस समय बढ़ी जब मेडिकल कालेज ने संक्रमित गर्भवती महिलाओं का सिजेरियन करने का फैसला लिया। बिना घबराए उन्होंने अपनी टीम का भी हौसला बढ़ाया और मई में पहला सिजेरियन आपरेशन सफलता पूर्वक करवाया।

बकौल डा. सुशील, किसी भी आपरेशन में एनेस्थीसिया विशेषज्ञ की जिम्मेदारी अधिक होती है। मरीजों को वार्ड से आपरेशन थियेटर ले जाने, उसे नाली लगाने और बेहोश आदि करने की पूरी प्रक्रिया में हम मरीज के सबसे करीब रहते हैं। ऐसे में खतरा भी अधिक होता है। पीपीई किट में लगातार खड़े रहने से शरीर पसीने से भीग जाता था। बार-बार किट के चश्मे पर भाप जमने से आपरेशन के दौरान कई बार उसे साफ करना पड़ता था लेकिन एक लक्ष्य था कि जच्चा-बच्चा सुरक्षित रहें। दो बार कोरोना संक्रमित होने के बाद दूसरी बार कुछ दिक्कतें थीं लेकिन जैसे ही समय अवधि पूरी होने के बाद अस्पताल से फोन आया तो आपरेशन के लिए पहुंच गया। मेरी टीम और पत्नी ने भी मेरा काफी उत्साह बढ़ाया। डा. सुशील की पत्नी आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं और वह कुल्लू में कोरोना ड्यूटी पर रहती हैं। इनकी एक तीन साल की बेटी है। कोरोना काल के दौरान परिवार से भी मिलना बहुत कम होता था।

पहली बार सितंबर 2020 में हुए संक्रमित
डा. सुशील पहली बार सितंबर 2020 में कोरोना संक्रमित हुए तो उसके 16 दिन के बाद ड्यूटी देनी शुरू कर दी। वह अप्रैल 2021 में पुन: कोरोना की चपेट में आए। इस दौरान निमोनिया हुआ और आक्सीजन के सहारे रहे। हालात थोड़े विपरीत थे और एक महीना ठीक होने में लगा। ठीक होते ही पुन: अपने काम पर लग गए।

डा. सुशील आपरेशन थियेटर के साथ सप्ताह में सातों दिन आइसीयू में गंभीर मरीजों और जनरल वार्ड में भी ड्यूटी देते हैं। वह बताते हैं कि जब कोरोना के मामले अधिक आए तो कई मरीज घबराए हुए थे। हम उन्हें हौसला देते हैं। ठीक होकर गए कोरोना संक्रमित उनका और उनकी टीम का भी आभार जताते हैं।


