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हिमाचल की ‘पूलें’ पहुंचीं काशी: PM मोदी ने फोन कर जयराम ठाकुर से मंगवाए, बिल भी मांगा

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हिमाचल से गहरा लगाव एक बार फिर सामने आया है। इस बार जुड़ाव की डोर बनी सिराज मंडी की साधारण ग्रामीण महिलाएं और उनकी बनाई पारंपरिक ‘पूलें’। मंडी जिले के दूरस्थ गांवों में बनाई जाने वाली पारंपरिक ऊनी चप्पलें, जिन्हें स्थानीय बोली में ‘पूलें’ कहा जाता है, एक बार फिर सुर्खियों में हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 75वें जन्मदिन पर भाजपा द्वारा आयोजित सेवा पखवाड़ा के दौरान यह प्रसंग सामने आया कि प्रधानमंत्री ने स्वयं इन चप्पलों को काशी विश्वनाथ मंदिर के पुजारियों के लिए विशेष रूप से मंगवाया था।पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने एक वीडियो संदेश में इस यादगार पल को साझा किया। उन्होंने बताया कि “शुरुआत में तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि प्रधानमंत्री खुद फोन कर रहे हैं। लेकिन उन्होंने आत्मीयता से हिमाचल की पूलें मंगवाई और यह भी कहा कि बिल जरूर भेजा जाए। बाकायदा उन्होंने खुद भुगतान भी किया। सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन महिला मंडलों को प्रोत्साहन के तौर पर 12-12 हजार रुपये भेजने का निर्णय भी लिया।

प्रधानमंत्री मोदी ने हिमाचल से विशेष रूप से पूलें मंगवाकर उन्हें काशी विश्वनाथ धाम के पुजारियों को भेंट किया, ताकि वे ठंड के मौसम में उनका उपयोग कर सकें। यह सिर्फ़ उपहार नहीं, बल्कि एक संवेदनशील और मानवीय पहल थी, जिसमें हिमाचली संस्कृति, परंपरा और प्रधानमंत्री का करुणामयी व्यक्तित्व एक साथ झलकता है।

प्रधानमंत्री की इस पहल के बाद पूलों की मांग तेजी से बढ़ गई, खासकर मंदिरों के लिए। पूलें बनाने की जिम्मेदारी छतरी उपतहसील के सडोचा गांव की रमेशु देवी और खंधीधार गांव की नेहा देवी को सौंपी गई थी। स्वयं सहायता समूह की अन्य महिलाओं के साथ मिलकर दोनों ने लगभग 200 जोड़ी पूलें तैयार कीं। समय पर कार्य पूरा करने के लिए महिलाओं ने दिन-रात मेहनत की।

क्या हैं पूलें
पूलें सिर्फ चप्पलें नहीं हैं, बल्कि हिमाचल की सांस्कृतिक पहचान हैं। इनकी तली भांग के रेशों से और ऊपरी हिस्सा रंग-बिरंगे ऊनी धागों से बुना जाता है। ये पैरों को गर्म रखती हैं और एक जोड़ी बनाने में लगभग दो से तीन दिन लगते हैं।

Vishal Verma

20 वर्षों के अनुभव के बाद एक सपना अपना नाम अपना काम । कभी पीटीसी चैनल से शुरू किया काम, मोबाईल से text message के जरिये खबर भेजना उसके बाद प्रिंट मीडिया में काम करना। कभी उतार-चड़ाव के दौर फिर खबरें अभी तक तो कभी सूर्या चैनल के साथ काम करना। अभी भी उसके लिए काम करना लेकिन अपने साथियों के साथ third eye today की शुरुआत जिसमें जो सही लगे वो लिखना कोई दवाब नहीं जो सही वो दर्शकों तक