सिरमौर में हरी मक्की के पचौले बनाने का प्रचलन वदलते परिवेश में भी कायम

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पहाड़ी व्यंजनों में मक्की के पचौले का अलग ही महत्व है । सिरमौर और शिमला जिला के निचले  क्षेत्रों में हरी मक्की के पचौले और सतू तैयार करने का कालांतर से काफी प्रचलन है ।  प्रदेश में सर्वाधिक मक्की की पैदावार जिला सिरमौर में होती है । पचौले खाने में स्वादिष्ट होने के साथ खनिज तत्वों से भरपूर माने जाते हैं । इन दिनों  सिरमौर के निचले क्षेत्रों में मक्की की फसल भुटठे और पचौला बनाने के लिए तैयार हो गई है और बरसात के मौसम में लोगों द्वारा कच्ची मक्की का उपयोग खाने के लिए विभिन्न प्रकार से किया जा रहा है । राजगढ़ के जाजर गांव की किरण तोमर ने कच्ची मक्की के पचौले तैयार की विधि बताते हुए कहा कि खेत से हरी मक्की लाने के उपरांत उसे  छिलकर र्ग्राइंडर मशीन में पीसकर पेस्ट बनाया जाता है जबकि अतीत में हाथ से सील बटटे पर पीसकर पेस्ट तैयार किेया जाता था । अर्थात काफी मेहनत के उपरांत हरी मक्की का पेस्ट तैयार होता था । पचौले प्रायःदो प्रकार अर्थात मीठे और नमकीन बनाए जाते है ।  उन्होने बताया कि मीठे पचौले में गुड़ अथवा शक्कर के अतिरिक्त मीठी सौप, गरी इत्यादि का मिश्रण डाला जाता है जबकि नमकीन पचौले में आवश्यतानुसार नमक व अन्य मसाले मिलाए जाते है । तदोपरांत तैयार पेस्ट  को मक्की के पतों पर रखकर खुले बर्तन में भाप पकाया जाता है  । पचौलों को अक्सर घी अथवा दही के साथ बड़े चाव के साथ खाया जाता है । उन्होने बताया कि पचौले को कई स्थानों पर इसे डणे भी कहा जाता है ।

जाजर गांव की  84 वर्षीय वरिष्ठ नागरिक कलावती ने बताया  कि अतीत में जब अनाज की कमी हुआ करती थी उस दौरान बरसात के दिनों में वह खेत से हरी मक्की काटकर लाकर उसे सील बटटे पर पीसकर पचौले अर्थात डणे बनाए जाते थे जिससे बच्चों की भूख को मिटाया जाता था । उन्होने बताया कि पहाड़ों में हरी और सूखी मक्की के सतू भी बनाए जाते है । लोग खेत से हरी मक्की को काटकर उसे उबाल कर धूप में सूखाते है और बाद में उसके दाने निकालकर अतीत में घराट और अब चक्की में पीसते है । विशेषकर गर्मियों के मौसम में लोग सतू को दिन के भोजन में लस्सी के साथ खाते है जिसका स्वाद बहुत ही मीठा होता है लोग  अपनी रूचि के अनुरूप सतू को स्वादिष्ठ बनाने के लिए  शक्कर अथवा चटनी मिलाते हैं । सतू को एक पूर्ण आहार माना जाता है किसान प्रायः समय की बचत के लिए इसका उपयोग अपने खेतों में करते हैं ।

गौरतलब है कि हरी मक्की से तैयार पचौले एक पहाड़ी व्यंजन है जोकि स्वादिष्ट ही नही अपितु अनेक खनिज तत्वों से भी भरपूर है । पहाड़ों में हरी मक्की का उपयोग विभिन्न प्रकार से किया जाता है  जिसमें लोगों द्वारा हरी मक्की का उपयोग  भूटठों के अतिरिक्त पहाड़ी व्यंजन पचौले और सतू के रूप में भी किया जाता है । हरी मक्की को प्रायः भूटटे के तौर पर बड़े शौक के साथ खाई जाती है और यदि इसके साथ अखरोट का मिश्रण किया जाए तो इसका स्वाद दुगना हो जाता है । बाजारों में हरी मक्की के भूटटे भूनने के लिए रेड़ियां लगी होती है जहां पर लोग भूटटे को बड़े शौक से खरीदकर खाते है । इसके अतिरिक्त सर्दियों के दिनों में  मक्की की रोटी का उपयोग पहाड़ों में हर घर में  किया जाता है क्योंकि मक्की में कार्बोहाड्रेट और आयरन प्रचुर मात्रा में पाई जाती है और मक्की की रोटी की ताहसीर भी गर्म होती है । चूल्हे में लकड़ी की आग से तैयार मक्की की रोटी का स्वाद ही निराला होता है। सरसों का साग अथवा अरबी की सब्जी के साथ मक्की की रोटी के खाने का मजा ही कुछ अलग है । बदलते परिवेश में ग्रामीण क्षेत्रों में नकदी फसलों के  कारण मक्का का उत्पादन भले कम हुआ है परन्तु मक्का का विशेषकर  ग्रामीण जीवन में महत्व कम नहीं हुआ है ।

आयंुर्वेद विशेषज्ञों के अनुसार मक्का में फाईबर काफी मात्रा में उपलब्ध होता  है जिसके उपयोग से शरीर में कॉलेस्ट्रॉल स्तर को सामान्य बनने के अतिरिक्त हृदय संबधी रोगों से भी बचाव रहता  है । मक्का के दैनिक जीवन में उपयोग से मनुष्य के शरीर में आयरन की कमी भी पूरी होती है अर्थात मक्की की रोटी मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक है । कालांतर से ग्रामीण क्षेत्रों में मक्की का उपयोग भिन्न भिन्न तरीके से काफी मात्रा में किया जाता रहा है परन्तु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मक्की की रोटी और साग लोगों की बहुत बड़ी पसंद बन गई है ।

Anju

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