साल दर साल बढ़ रहा तबाही का मंजर, फाइलों में बचाव की योजनाएं

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हिमाचल में हर साल बरसात अपने साथ तबाही ला रही है। हर साल लोगों की जान जा रही है तो करोड़ों की संपत्ति को नुकसान हो रहा है। सरकार और जिला प्रशासन मौके पर दावे तो बहुत करता है लेकिन योजनाएं फाइलों में ही दबी हैं। कुल्लू, लाहौल, किन्नौर, मंडी, कांगड़ा के कई ऐसे इलाके हैं जहां बरसात में हर साल भारी नुकसान हो रहा है। यहां के कई इलाके ऐसे हैं जहां के लोगों को बाढ़ आने पर पलायन करना पड़ता है।

हिमाचल में मानसून से तबाही।

पर्यावरण प्रेेमियों का कहना है कि नुकसान से बचाने के लिए अभी से प्रयास करने होंगे। कुदरत से छेड़छाड़ और विकास के नाम पर अंधाधुंध खनन भी इसका एक कारण है। समूचे हिमाचल के अधिकांश पहाड़ अति संवेदनशील हैं और ये बरसात में सबसे ज्यादा दरकते हैं। इस बार बरसात में पहाड़ दरकने से प्रदेश में काफी तबाही मची है। जानमाल का काफी नुकसान हुआ है। पहाड़ ही नहीं, यहां नदियां और नाले भी बरसात में खूब तबाही कर चुके हैं। 

विशेषज्ञ कहते हैं कि पहाड़ों में खुदाई से पहले विशेषज्ञों की राय लेना जरूरी है और अगर कोई दिक्कत न हो तो इसके बाद ही निर्माण किया जाए। प्रदेश के पर्यावरण को लेकर बराबर अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है हिमाचल के पहाड़ों की बनावट कुछ ऐसी है कि इनमें बरसात में काफी ज्यादा नमी उत्पन्न होती है। ये पहाड़ छोटी-छोटी चट्टानों के टुकड़ों और मिट्टी से बने हैं। बारिश के बाद पहाड़ों में काफी ज्यादा नमी पैदा होते ही यह ढहने लगते हैं। प्रदेश में पहाड़ों को काटकर फोरलेन सड़कों का निर्माण हो रहा है। जैसे ही बरसात शुरू होती है तो ये ढहने लगते हैं। कालका-शिमला मार्ग में निर्माण के दौरान पहाड़ों के दरकने की समस्या सबसे ज्यादा सामने आई है।

कई बार ऐसा भी होता रहा है कि पहले निर्माण कर दिया जाता है। जब भू्स्खलन की समस्या आती है तो विशेषज्ञों से सुझाव मांगे जाते हैं। धर्मशाला के कोतवाली बाजार में लगी रिटेनिंग वॉल भी गिरने की स्थिति में है। इसे बचाने के लिए अब विशेषज्ञों की राय ली जा रही है। 

बांध तो बना दिए कैचमेंट में पानी मापने के यंत्र नहीं
प्रदेश की नदियों और नालों में बरसात के समय पानी का जल स्तर अपेक्षाकृत काफी बढ़ जाता है। इन नदियों और नालों के पानी पर बांध बनाकर छोटी और बड़ी बिजली परियोजनाएं बनाई गई हैं। कड़छम वांगतू नाथपा-झाकड़ी बिजली परियोजनाओं को चलाने के लिए बड़े-बड़े  डैम भी बना रखे हैं। इन डैम तक पानी पहुंचाने वाली नदियों और नालों में कितना पानी बढ़ रहा है, यह मापने के लिए उपकरण तक नहीं लगे हैं।  

वाडिया इंस्टीट्यूट में वैज्ञानिक रहे केंद्रीय विश्वविद्यालय के निदेशक इंचरनल क्वालिटी एश्योरेंस सेल (आईक्यूएसी) प्रो. एके महाजन ने कहा कि पूरे हिमाचल के पहाड़ों की बनावट ऐसी है कि बरसात में काफी नमी पैदा होती है। इस कारण से ये बरसात में सबसे ज्यादा दरकते हैं और नुकसान करते हैं। इस नुकसान से बचने का एक ही उपाय है कि पहाड़ों में खुदाई से पहले विशेषज्ञों का राय लें और फिर उसके आधार पर निर्माण कराया जाए। 

बरसात का मौसम शुरू होते ही सैंज घाटी में नदी किनारे बसी कई बस्तियों में माहौल डराने वाला है। निहारनी डैम के आगे किली री परेशी की पहाड़ी खिसकने से बाढ़ का खतरा अब भी बरकरार है। पिछले साल हुई भारी बारिश के दौरान निहारनी डैम से पानी छोड़ा गया तो इस पहाड़ी से भूस्खलन होना शुरू हुआ। संभावित खतरे को देख न्यूली गांव के लोगों ने अपना सामान समेटना शुरू कर दिया है। लोगों को डर था कि अगर यह पहाड़ी खिसकी तो नदी का बहाव रोक देगी। इस साल भी भूस्खलन से मलबा नदी के किनारे पहुंच चुका है। लोगों को डर है कि बरसात में यह मलबा तबाही का कारण बनेगा।

Vishal Verma

20 वर्षों के अनुभव के बाद एक सपना अपना नाम अपना काम । कभी पीटीसी चैनल से शुरू किया काम, मोबाईल से text message के जरिये खबर भेजना उसके बाद प्रिंट मीडिया में काम करना। कभी उतार-चड़ाव के दौर फिर खबरें अभी तक तो कभी सूर्या चैनल के साथ काम करना। अभी भी उसके लिए काम करना लेकिन अपने साथियों के साथ third eye today की शुरुआत जिसमें जो सही लगे वो लिखना कोई दवाब नहीं जो सही वो दर्शकों तक