भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद से डा.राजीव बिन्दल के त्यागपत्र से सरकार की परेशानी कम नहीं बल्कि बढ़ी है। विपक्ष ने उनके इस्तीफे के बाद मुख्यमंत्री पर इस्तीफे के लिए दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है। स्वास्थ्य विभाग में कथित भ्रष्टाचार की कथित ऑडियो 20 व 21 मई के बीच में वायरल हुई थी लेकिन 17 से 18 दिन बीत जाने के बाद भी जांच में बड़ा खुलासा नहीं हुआ है। अब तक विजीलेंस जांच में किसी भी नेता की भूमिका सामने नहीं आई है। प्रदेश में ही नहीं देश में ही शायद यह ऐसा पहला मामला था जिसमें किसी नेता के नाम का खुलासा भी नहीं हुआ और पार्टी अध्यक्ष का त्यागपत्र भी हो गया। अब उनका यह त्यागपत्र उच्च नैतिकता के उदहारण को प्रस्तुत कर रहा है कि स्वास्थ्य विभाग में कथित भ्रष्टाचार के तार भाजपा के बड़े नेता से जोड़े जाने पर ही पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने अपने पद से ही त्यागपत्र दे दिया। इस मामले में सरकार की परेशानी इसलिए बढ़नी शुरू हो गई है कि विजीलेंस जांच में अभी तक कुछ भी सामने नहीं आया है। विपक्ष के लगातार बढ़ते दबाव के कारण करीब एक पखवाड़े बाद इस मामले में स्पलायर की गिरफ्तारी संभव हुई है। विपक्ष स्वास्थ्य विभाग में कोराना काल में पी.पी.ई. किट व अन्य उपकरणों की खरीद में हुए कथित भ्रष्टाचार का बड़ा मामला बताकर मुख्यमंत्री से ही इस्तीफे की मांग कर रहा है क्योंकि वर्तमान में स्वास्थ्य विभाग उनके पास है। यही नहीं इस मामले की जांच हाईकोर्ट के जज से करवाने की भी मांग कर रहा है।
यहां पर विदित रहे कि 20 व 21 पूर्व स्वास्थ्य विभाग के तत्कालीन निदेशक व स्पलायर की कथित भ्रष्टाचार की एक ऑडियो वायरल हुई। सरकार ने त्वरित कार्रवाई करते हुए उसी दिन इस मामले की जांच विजीलेंस को सौंप दी। इस ऑडियो के वायरल होने बाद प्रदेश की ही नहीं देश की राजनीति में भूजाल आ गया। मुद्दाविहीन विपक्ष के पास सरकार को घेरने का जबरदस्त मुद्दा आ गया। 47 सैकंड की इस आडियो ने राष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश की छवि को दागदार किया। राष्ट्रीय चैनलों ने इसे देश में कोराना काल के समय का पहले भ्रष्टाचार के मामले की संज्ञा दे दी। इस ऑडियों के वायरल होने व डा. राजीव बिन्दल के इस्तीफा देने के बीच कोई भी मंत्री या भाजपा का बड़ा नेता सरकार के बचाव में खुलकर सामने आता नजर नहीं आया। केवल मुख्यमंत्री ही विपक्ष के हमलों का जवाब देते रहे। इसी स्थिति ने भी डा. राजीव बिन्दल को इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया। डा. राजीव बिन्दल का इस्तीफा देते ही भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा ने इसे तुरंत स्वीकार कर दिया। इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण डा.राजीव बिन्दल उनके ही पंसद से प्रदेश अध्यक्ष बने थे। यह मामला प्रधानमंत्री कार्यालय में ध्यान में आने के बाद उनका इस्तीफा स्वीकार करने के अलावा राष्ट्रीय अध्यक्ष के पास कोई चारा नहीं बचा था। इसके लिए जांच का भी इंतजार नहीं किया। कोरोना काल के दौरान सचिवालय में सैनिटाइजर घोटाले के बाद यह भ्रष्टाचार का दूसरा मामला था। डा.राजीव बिंदल के इस्तीफा देने के बाद भाजपा के नेता सरकार के बचाव में उतर गए और विपक्ष को उनके आरोपों का मुहं तोड़ जबाव देने लगे। जीरो टालरेंस भ्रष्टाचार के बड़े – बड़े दावे किए जाने लगे। सरकार ने बिना समय गवाएं दोनों मामलों में जांच के आदेश दे दिए। जीरो टॉलरेंस की यह कोई नई बात नहीं है। पूर्व सरकारों के समय में भी भ्रष्टाचार का मामला सामने आते ही जांच शुरू होती थी, यह बात अलग है कि जांच में कुछ नहीं निकलता होगा लेकिन जांच जरूरत होती थी। वर्तमान सरकार में भी कुछ नया नहीं हो रहा है। जीरो टॉलरेंस का यह मतलब होना चाहिए है कि सिस्टम इस तरह का हो कोई भी भ्रष्टाचार का साहस न करें। न की ऐसा हो कि भ्रष्टाचार को मामला सामने आने पर जांच बैठा दी। यदि मामला सामने न आए तो …………….? इस प्रकार के कई यक्ष प्रश्न खड़े हो रहे है। विपक्ष की स्वास्थ्य विभाग में कथित भ्रष्टाचार के इस मामले में सरकार की घेराबंदी लगातार बढ़ती जा रही है। विपक्ष इस मामले में पीछे हटने को तैयार नहीं है। अब देखना है कि आने वाले दिनों में इस मामले में क्या नए खुलासे होते हैं।
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