श्रम कानूनों में बदलाव व किसान विरोधी अध्यादेशों के खिलाफ मजदूरों-किसानों ने किया प्रदर्शन
सीटू,इंटक,एटक सहित दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों,दर्जनों राष्ट्रीय फैडरेशनों व हिमाचल किसान सभा सहित सैंकड़ों किसान संगठनों के आह्वान पर केंद्र व राज्य सरकारों की मजदूर व किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ सोलन में मजदूरों द्वारा “भारत बचाओ दिवस” व किसानों द्वारा “किसान मुक्ति दिवस” मनाया गया। इस दौरान जिला के बागा, बद्दी, डगशाई, मिड डे मील सोलन, कंडाघाट, व कंस्ट्रक्शन वर्करज़ फैडरेशन के मजदूरों व किसानों ने अपने कार्यस्थलों ,ब्लॉक व इकाई स्तर पर केंद्र सरकार की मजदूर व किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किए।
प्रदेश भर में हुए प्रदर्शनों में श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी परिवर्तन की प्रक्रिया पर रोक लगाने, मजदूरों का वेतन 21 हज़ार रुपये घोषित करने, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को बेचने पर रोक लगाने, किसान विरोधी अध्यादेशों को वापिस लेने, मजदूरों को कोरोना काल के पांच महीनों का वेतन देने, उनकी छंटनी पर रोक लगाने, किसानों की फसलों का उचित दाम देने, कर्ज़ा मुक्ति, मनरेगा के तहत दो सौ दिन का रोज़गार, कॉरपोरेट खेती पर रोक लगाने, आंगनबाड़ी, मिड डे मील व आशा वर्करज़ को नियमित कर्मचारी घोषित करने, फिक्स टर्म रोज़गार पर रोक लगाने, हर व्यक्ति को महीने का दस किलो मुफ्त राशन देने व 7500 रुपये देने की मांग की गई। किसानों-मजदूरों ने मांग की है कि केंद्र सरकार कोरोना काल में सभी किसानों का रबी फसल का कर्ज माफ करे व खरीफ फसल के लिए केसीसी जारी करे। किसानों की पूर्ण कर्ज़ माफी की जाए। किसानों को फसल का सी-2 लागत से 50 फीसद अधिक दाम दिया जाए। किसानों के लिए “वन नेशन-वन मार्किट” नहीं बल्कि”वन नेशन-वन एमएसपी” की नीति लागू की जाए। किसानों व आदिवासियों की खेती की ज़मीन कम्पनियों को देने व कॉरपोरेट खेती पर रोक लगाई जाए। महिला शोषण पर रोक लगाई जाए,उनका आर्थिक शोषण बन्द किया जाए,नई शिक्षा नीति को वापिस लिया जाए,शिक्षा के निजीकरण,व्यापारीकरण व केंद्रीकरण पर रोक लगाई जाए,बढ़ती बेरोजगारी पर रोक लगाई जाए,बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता दिया जाए।
इस मौके पर किसानों व मजदूरों ने केंद्र व प्रदेश सरकारों को चेताया है कि वह मजदूर व किसान विरोधी कदमों से हाथ पीछे खींचें अन्यथा मजदूर व किसान आंदोलन तेज होगा। उन्होंने कहा है कि कोरोना महामारी के इस संकट काल को भी शासक वर्ग व सरकारें मजदूरों व किसानों का खून चूसने व उनके शोषण को तेज करने के लिए इस्तेमाल कर रही हैं। हिमाचल प्रदेश,मध्य प्रदेश,उत्तर प्रदेश,गुजरात,हरियाणा,महाराष्ट्र,राजस्थान में श्रम कानूनों में बदलाव इसी प्रक्रिया का हिस्सा है।



प्रदेश भर में हुए प्रदर्शनों में श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी परिवर्तन की प्रक्रिया पर रोक लगाने, मजदूरों का वेतन 21 हज़ार रुपये घोषित करने, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को बेचने पर रोक लगाने, किसान विरोधी अध्यादेशों को वापिस लेने, मजदूरों को कोरोना काल के पांच महीनों का वेतन देने, उनकी छंटनी पर रोक लगाने, किसानों की फसलों का उचित दाम देने, कर्ज़ा मुक्ति, मनरेगा के तहत दो सौ दिन का रोज़गार, कॉरपोरेट खेती पर रोक लगाने, आंगनबाड़ी, मिड डे मील व आशा वर्करज़ को नियमित कर्मचारी घोषित करने, फिक्स टर्म रोज़गार पर रोक लगाने, हर व्यक्ति को महीने का दस किलो मुफ्त राशन देने व 7500 रुपये देने की मांग की गई। किसानों-मजदूरों ने मांग की है कि केंद्र सरकार कोरोना काल में सभी किसानों का रबी फसल का कर्ज माफ करे व खरीफ फसल के लिए केसीसी जारी करे। किसानों की पूर्ण कर्ज़ माफी की जाए। किसानों को फसल का सी-2 लागत से 50 फीसद अधिक दाम दिया जाए। किसानों के लिए “वन नेशन-वन मार्किट” नहीं बल्कि”वन नेशन-वन एमएसपी” की नीति लागू की जाए। किसानों व आदिवासियों की खेती की ज़मीन कम्पनियों को देने व कॉरपोरेट खेती पर रोक लगाई जाए। महिला शोषण पर रोक लगाई जाए,उनका आर्थिक शोषण बन्द किया जाए,नई शिक्षा नीति को वापिस लिया जाए,शिक्षा के निजीकरण,व्यापारीकरण व केंद्रीकरण पर रोक लगाई जाए,बढ़ती बेरोजगारी पर रोक लगाई जाए,बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता दिया जाए।