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शूलिनी मेले में सोलन पुलिस बनी मसीहा, परिवार से मिलाए बिछड़े हुए 9 मासूम

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हर वर्ष की तरह इस बार भी सोलन शहर ने मां शूलिनी के पावन राज्य स्तरीय मेले को श्रद्धा और उल्लास से मनाया। 20 से 22 जून तक चले इस तीन दिवसीय आयोजन में लाखों श्रद्धालु पहुंचे। यह मेला जहां आस्था और संस्कृति का संगम बना, वहीं पुलिस प्रशासन के लिए यह आयोजन किसी बड़ी परीक्षा से कम नहीं था।लाखों की भीड़ को संभालना, असामाजिक तत्वों पर नजर रखना और हर नागरिक की सुरक्षा सुनिश्चित करना ये सब जिम्मेदारियां जिला पुलिस के कंधों पर थीं। लेकिन इस भीड़ भरे माहौल में एक सबसे संवेदनशील और दिल को छू लेने वाला पक्ष भी सामने आया छोटे-छोटे मासूम बच्चों का अपने माता-पिता से बिछुड़ जाना।बच्चों की मासूम आंखों में डर, घबराहट और बेचैनी थी। वहीं दूसरी ओर उनके माता-पिता की निगाहें बेसब्री से अपने लाडले की एक झलक तलाश रही थीं। लेकिन इस निराशा और डर के बीच एक उम्मीद की किरण बनकर सामने आई सोलन पुलिस, जिसने मानवता की मिसाल पेश करते हुए 9 गुमशुदा बच्चों को उनके परिवारों से सही-सलामत मिलवाया।

मेले में स्थापित सहायता केंद्रों, माइक अनाउंसमेंट्स और सतर्क निगरानी व्यवस्था की बदौलत पुलिस ने इन मासूमों को खोजा और फिर उन्हें उनके परिजनों से मिलाया। जब कोई मां अपने बिछड़े हुए बच्चे को गले लगाकर रो पड़ी, या किसी पिता ने अपने बच्चे को देखकर सुकून की सांस ली तो वह दृश्य मानो पूरी मानवता के लिए एक सच्ची प्रेरणा बन गया।

यह सिर्फ एक पुलिस ड्यूटी नहीं थी, यह एक भावना थी हर मां की ममता की पुकार, हर पिता की चिंताओं का जवाब। सोलन पुलिस ने साबित कर दिया कि वर्दी सिर्फ कानून का प्रतीक नहीं होती, वह इंसानियत और संवेदनशीलता की भी प्रतीक होती है।

साथ ही, पुलिस ने मेले में कानून व्यवस्था, ट्रैफिक प्रबंधन और सुरक्षा व्यवस्था को भी बखूबी संभाला। यह मेला न केवल आस्था का पर्व रहा, बल्कि पुलिस की संवेदनशील सेवा और समर्पण का भी एक मार्मिक उदाहरण बनकर हमेशा के लिए यादगार बन गया।

 

Vishal Verma

20 वर्षों के अनुभव के बाद एक सपना अपना नाम अपना काम । कभी पीटीसी चैनल से शुरू किया काम, मोबाईल से text message के जरिये खबर भेजना उसके बाद प्रिंट मीडिया में काम करना। कभी उतार-चड़ाव के दौर फिर खबरें अभी तक तो कभी सूर्या चैनल के साथ काम करना। अभी भी उसके लिए काम करना लेकिन अपने साथियों के साथ third eye today की शुरुआत जिसमें जो सही लगे वो लिखना कोई दवाब नहीं जो सही वो दर्शकों तक