शिलाई पहुंचे चालदा महासू महाराज; फूल-मालाओं से हुआ स्वागत, एक साल पशमी में रुकेंगे, देखें तस्वीरें
हिमाचल प्रदेश में पहली बार गिरिपार के शिलाई पहुंचे चालदा महासू महाराज का द्राबिल के बाद शिलाई में स्वागत भव्य और उत्साह के साथ हुआ। हजारों श्रद्धालुओं का सैलाब फूल-मालाओं और पारंपरिक नृत्यों के साथ स्वागत करने पहुंचा। महाराज का आगमन क्षेत्र में नई ऊर्जा और आध्यात्मिक महत्व के प्रति गहरी भावनात्मक जुड़ाव को भी दर्शाता है। शनिवार और फिर रविवार को स्वागत में उमड़ा श्रद्धालुओं का जन सैलाब पूरी कहानी बयां कर रहा है। वैसे तो वर्ष 2020 में जब मुल्क मालिक का प्रतीक चिन्ह घानंडुआ बकरा बिना किसी की सहायता से स्वयं उत्तराखंड के दस्ऊ गांव से टौंस नदी को पार कर जब पशमी गांव पहुंचा था। ऐसे में महाराज के हिमाचल आगमन की उद्घोषणा उसी समय हो गई थी। सिरमौर के लोग चालदा महासू के आगमन को एक ऐतिहासिक और चमत्कारी घटना मानते हैं। जिले भर के लोगों को पहली बार महाराज के स्वागत का सौभाग्य मिल पाया है।यह एक अनूठी देव परंपरा है। यह देव परंपरा देवभूमि उत्तराखंड और हिमाचल को आपस में जोड़ रही है। खासकर जब महाराज के उत्तराखंड से प्रदेश के सिरमौर क्षेत्र की ऐतिहासिक प्रथम यात्रा पर हैं। जहां लोग आस्था के प्रतीक देवता के आगमन से रोमांचित हैं। बता दें कि उत्तराखंड के दसऊ गांव में महासू महाराज को विदा करते हुए भक्तों को रोते हुए देखा गया था। वही, उत्तराखंड सीमा के मीनस पुल से हिमाचल में प्रवेश करते ही स्वागत के समय सबकी खुशी और उत्साह चरम पर रहा।
आस्था का प्रतीक हैं चालदा महासू महाराज

इसके बावजूद पशमी गांव पीछे नहीं हटा। गांव में महासू महाराज के मंदिर का निर्माण किया गया, जो न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र बना, बल्कि पशमी की स्वायत्त पहचान का भी प्रतीक बन गया। अब स्थिति एक नए मोड़ पर है। शिलाई के नंबरदार द्वारा अगवानी करने से मना करने पर पुनदराऊ नंबरदार शिलाई क्षेत्र के विधायक एवं वर्तमान उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान की अगुवाई में उत्तराखंड से चालदा महासू महाराज का पशमी गांव आगमन हो रहा है। यह केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि सामाजिक स्वीकृति और राजनीतिक संरक्षण का संकेत भी है।जिस पशमी गांव को लंबे समय तक बिना सियाणा कहा जाता रहा, आज उसी गांव को एक प्रभावशाली राजनीतिक नेतृत्व का संरक्षण प्राप्त होता दिख रहा है। स्थानीय चर्चाओं में यह बात जोर पकड़ रही है कि क्या इंदौऊ को अब अपना नया सियाणा मिल गया है? पशमी गांव की कहानी अब केवल एक कहावत तक सीमित नहीं रही यह अब परंपरा, प्रतिरोध और सत्ता के पुनर्संतुलन की जीवंत मिसाल बनती जा रही है।
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