लोकतंत्र के पर्व के लिए उत्साह दिखाते हुए लंबी आयु का रहस्य खोल रहे बुजुर्ग
लोकतंत्र के महापर्व में फिर सामने आकर हिमाचल प्रदेश के कई बुजुर्ग अपनी लंबी आयु होने का रहस्य खोल रहे हैं। वे ‘जीवेम शरदः शतम्’ यानी ‘हम सौ वर्ष तक जिएं’ संकल्प को मूर्त रूप देने वाले जीवंत उदाहरण हैं। कुछ की आनुवांशिकता ही ऐसी है कि उनके सगे-संबंधी भी इतना लंबा जिए तो वातावरण, खान-पान और आदर्श जीवनशैली इस लंबी उम्र के मूलाधार हैं ही। जिला सिरमौर की दुर्गम और पिछड़ी तहसील शिलाई के तहत आने वाला दूरदराज का पनोग गांव… इस गांव से पंद्रह-बीस किलोमीटर दूर उत्तराखंड के देहरादून जनपद के जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर की सीमा लगती है। यहां अपने घर के बरामदे में ऐसे ही एक शतकवीर बुजुर्ग रामिया राम कुर्सी पर बैठे हैं।वह सीढ़ियों से न गिरे होते तो इतने चुस्त थे कि कुछ वक्त पहले तक अपने खेतों में कस्सी-कुदाली उठाकर काम करने जाते थे। खाने में वह मक्की की रोटी ही पसंद करते हैं और पुराने अनाज भी। इस बार भी वह लोकसभा चुनाव के लिए मतदान करने को बहुत उत्साहित हैं। सवाल करने पर उन्होंने उल्टा पूछा, ‘वोट ऐ देणा, पर चुनाव कबै?’ यानी ‘वोट देना है, चुनाव कब है?’ उन्हें जब बताया कि एक जून को मतदान है तो उनके चेहरे पर इस महोत्सव में एक बार फिर भाग लेने का उत्साह झलक आया। उनसे उम्र पूछी तो बोले, ‘शौ साल से जादा।’
रामिया राम के बेटे मनोज का दावा है कि उनकी उम्र असल में 104 साल हो गई है। उनकी बड़ी बहन मेहंदी देवी केलवी गांव में रहती हैं, वह उनसे एक साल बड़ी हैं। रामिया राम के बड़े भाई नंबरदार लाल सिंह की उम्र उनसे पांच वर्ष ज्यादा थी, जिनकी पिछले साल मृत्यु हो गई। सबसे बड़ी बहन मगणो देवी की 2015 में मृत्यु हुई थी, वह भी सौ साल पार थीं।
वंशानुगत कारण भी लंबी आयु की बड़ी वजह : डॉ. पाल
आईजीएमसी शिमला और मेडिकल कॉलेज टांडा में प्रधानाचार्य रह चुके डॉ. एलएस पाल का कहना है कि वंशानुगत कारण भी लंबी आयु की बड़ी वजह है। पुराने लोगों का खान-पान बहुत अच्छा रहा है, मिलावट नहीं होती थी। अपनी खेती-बाड़ी करते थे और जीवनपर्यंत सेवानिवृत्त नहीं होते थे। प्रदूषणमुक्त परिवेश में रहते आए हैं। आज की तथाकथित विकसित जीवनशैली ही ऐसी है, जिससे लोग लंबे नहीं जी पा रहे हैं।
आईजीएमसी शिमला और मेडिकल कॉलेज टांडा में प्रधानाचार्य रह चुके डॉ. एलएस पाल का कहना है कि वंशानुगत कारण भी लंबी आयु की बड़ी वजह है। पुराने लोगों का खान-पान बहुत अच्छा रहा है, मिलावट नहीं होती थी। अपनी खेती-बाड़ी करते थे और जीवनपर्यंत सेवानिवृत्त नहीं होते थे। प्रदूषणमुक्त परिवेश में रहते आए हैं। आज की तथाकथित विकसित जीवनशैली ही ऐसी है, जिससे लोग लंबे नहीं जी पा रहे हैं।