राष्ट्रपति की सहमति के बिना बंगाल में लागू नहीं हो पाएगा ममता का एंटी रेप बिल
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में 9 अगस्त को रेप के बाद महिला डॉक्टर की हत्या कर दी गई थी. इस घटना के बाद पश्चिम बंगाल सरकार मंगलवार को विधानसभा में अपराजिता महिला एवं बाल (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून संशोधन) विधेयक-2024 लेकर आई. समवर्ती सूची (केंद्रीय कानून) के कानून में संशोधन पारित करने के बाद राज्य सरकार इसे सहमति के लिए राष्ट्रपति के पास भेजेगी. उनकी सहमति के बाद इसे राज्य में लागू किया जा सकेगा.
सर्वोच्च अदालत के अधिवक्ता अनुपम मिश्रा, ज्ञानंत सिंह, अभिषेक राय और नरेंद्र मिश्रा के मुताबिक, समवर्ती सूची से संबंधित कानून में राज्य सरकारें संशोधन कर सकती हैं. पहले भी कई राज्य सरकारें आपराधिक कानून में संशोधन के लिए बिल लेकर आई थीं. विधेयक पारित होने के बाद सहमति के लिए राष्ट्रपति को भेजा जाना अनिवार्य है. यह संवैधानिक प्रक्रिया का हिस्सा है. बिना राष्ट्रपति की सहमति के विधेयक को कानून का रूप नहीं दिया जा सकता है.
राष्ट्रपति संशोधनों पर सहमति के लिए बाध्य नहीं
अधिवक्ताओं के मुताबिक, अगर राष्ट्रपति द्वारा संशोधन पर सहमति दी जाती है तो राज्य सरकार संशोधनों को कानून के तौर पर लागू कर सकेगी. अधिवक्ताओं ने कहा कि राष्ट्रपति राज्य द्वारा किए गए संशोधनों पर सहमति के लिए बाध्य नहीं हैं. राष्ट्रपति केंद्र के मशविरे के आधार पर सहमति और असहमति तय करते हैं.
विधेयक को करना पड़ सकता है सहमति का इंतजार
ऐसे में यह जरूरी नहीं कि विधेयक पर सहमति प्रदान की जाए. यह भी संभव है कि विधेयक सहमति का इंतजार करता रहे, क्योंकि संविधान में सहमति देने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है. कितनी अवधि के भीतर केंद्र को राष्ट्रपति को अपना सुझाव देना है और राष्ट्रपति केंद्र से कब सुझाव मांगें या फिर कब तक सहमति दें, ऐसी कोई समय सीमा संविधान में तय नहीं की गई है.
कब-कब हुई केंद्रीय कानूनों में बदलाव की कोशिश
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अधिवक्ताओं के मुताबिक, पश्चिम बंगाल केंद्रीय कानूनों में बदलाव करने की कोशिश करने वाला पहला राज्य नहीं है. 2019 में एक पशु चिकित्सक के साथ रेप और हत्या के बाद आंध्र प्रदेश सरकार ने दिशा विधेयक पारित किया था. इसमें रेप और गैंगरेप के मामले में मौत की सजा का प्रावधान किया गया.
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अगले ही साल 2020 में महाराष्ट्र ने शक्ति आपराधिक कानून विधेयक-2020 पारित किया था. इसमें रेप के लिए मौत की सजा का प्रावधान किया गया. इन दोनों विधेयकों पर अभी राष्ट्रपति से मंजूरी मिलनी बाकी है. अधिवक्ताओं ने कहा कि कई बार क्रूर घटनाओं के बाद जनता के आक्रोश और राजनीतिक दबाव के चलते राज्य सरकारें ऐसा कदम उठाती हैं.
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केंद्र सरकार ने भी निर्भया मामले के बाद तेजी से 2012 में संशोधन कर रेप कानून में सख्ती का प्रावधान किया था. भारतीय न्याय संहिता की धारा-64, 65, 66, 68 70(1), 71, 72, 73, 124 में अपराजिता विधेयक के जरिए संशोधन बिल लाया गया है. केंद्रीय कानून में ये धाराएं सजा का प्रावधान करती हैं
अपराजिता विधेयक में किए गए प्रस्ताव
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 193, 346 और बच्चों से संबंधित अधिनियम पॉक्सों की धारा 4, 6, 8, 10 और 35 में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है. बीएनएसएस की धाराएं आपराधिक प्रक्रिया से संबंधित हैं.
भारतीय न्याय संहिता से कैसे अलग है अपराजिता विधेयक
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रेप की सजा बीएनएस की धारा-64 में रेप के अपराध की सजा का प्रावधान न्यूनतम 10 साल है. इसे उम्रकैद (ताउम्र) तक बढ़ाया जा सकता है. साथ ही आर्थिक जुर्माने का भी प्रावधान है. अपराजिता विधेयक में उम्रकैद (ताउम्र) की सजा का प्रावधान है. जबकि कैपिटल पनिशमेंट यानी मृत्युदंड-फांसी की सजा के साथ आर्थिक जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है. अंतर– केंद्रीय कानून में न्यूनतम 10 साल से उम्रकैद तक की सजा है, जबकि अपराजिता में न्यूनतम उम्रकैद और मृत्युदंड की सजा का प्रावधान है.
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रेप के बाद हत्या के अपराध में सजा भारतीय न्याय संहिता की धारा 66 में रेप के बाद पीड़िता की मौत होने या कोमा जैसी स्थिति में पहुंचने पर न्यूनतम 20 साल, जिसे उम्रकैद तक बढ़ाया जा सकता है. साथ ही मौत की सजा का भी प्रावधान है. चूंकि हत्या का अपराध शामिल है. अपराजिता में ऐसे मामलों में दोषी के लिए मृत्युदंड यानी फांसी की सजा का प्रावधान है. साथ ही आर्थिक जुर्माना भी लगाया जाएगा. अंतर– केंद्रीय कानून में अदालत के विवेक के आधार पर दोषी को 20 साल, उम्रकैद या मृत्युदंड की सजा तामिल की जाएगी. जबकि अपराजिता में अदालत को मृत्युदंड देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.
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गैंगरेप भारतीय न्याय संहिता की धारा 70(1) में गैंगरेप के मामले में दोषियों को न्यूनतम 20 साल की सजा रखी गई है, जो उम्रकैद तक बढ़ाई जा सकती है. इसमें उम्र का वर्गीकरण भी किया गया है. यानी पीड़िता की उम्र 18 साल से कम है तो उम्रकैद की सजा होना तय है. इसके अलावा मृत्युदंड यानी फांसी का भी प्रावधान रखा गया है. अपराजिता विधेयक में दोषियों के लिए उम्रकैद न्यूनतम सजा है और मृत्युदंड की सजा के साथ आर्थिक जुर्माने का भी प्रावधान है. अंतर– केंद्रीय कानून में उम्र के वर्गीकरण के आधार पर सजा न्यूनतम 20 साल हो सकती है. यह अदालत के विवेक पर निर्भर करता है कि वह दोषी को केंद्रीय कानून के तहत 20 साल, उम्रकैद या मौत की सजा दे. जबकि अपराजिता में उम्रकैद न्यूनतम है और मृत्युदंड का प्रावधान आर्थिक जुर्माने के साथ है. अदालत के पास यहां दो ही विकल्प बचे हैं.
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अपराध करने की प्रवृत्ति पर सजा (हैब्यूचल ऑफेंडर) भारतीय न्याय संहिता की धारा 71 में अगर कोई एक बार से अधिक रेप का दोषी पाया जाता है तो उसे न्यूनतम उम्रकैद की सजा होगी. मृत्युदंड की सजा के साथ आर्थिक जुर्माना भी लगाया जाएगा. अपराजिता में भी ऐसे दोषी को ताउम्र कारावास की सजा और मौत की सजा के साथ आर्थिक जुर्माने का प्रावधान है. अंतर– इस संशोधन में ज्यादा फर्क नहीं है. हालांकि प्रक्रिया को तेज किया गया है.
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पीड़ित की पहचान को सार्वजनिक करने पर सजा भारतीय न्याय संहिता में रेप पीड़िता की पहचान सार्वजनिक किए जाने पर जेल की सजा के साथ आर्थिक जुर्माने का प्रावधान धारा 72(1) में है. अपराजिता में ऐसा किए जाने पर 3 से 5 साल की सजा का प्रावधान जुर्माने के साथ किया गया है. अंतर– अपराजिता में केंद्रीय कानून की तुलना में पीड़िता की पहचान सार्वजनिक किए जाने के मामले में सजा के वर्ष में बढ़ोतरी की गई है.
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अदालती कार्यवाही को सार्वजनिक करने पर सजा भारतीय न्याय संहिता की धारा-73 में मंजूरी के बिना अदालती कार्यवाही को सार्वजनिक करने पर 2 साल तक की सजा का प्रावधान है. इसके अलावा जुर्माने का भी प्रावधान है. अपराजिता में इसको लेकर 3 से 5 साल तक की सजा और जुर्माने के दंड का प्रावधान किया गया है. अंतर-अपराजिता में केंद्रीय कानून की तुलना में सजा के वर्षों में वृद्धि की गई है.
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एसिड अटैक पर सजा भारतीय न्याय संहिता की धारा 124(1) के तहत अगर कोई व्यक्ति यह जानते हुए तेजाब से हमला करता है तो दोषी पाए जाने पर 10 साल तक की सजा है, जो उम्रकैद तक बढ़ायी जा सकती है. जबकि 124(2) में तेजाब हमले के दोषी को 5 से 7 साल तक की सजा का प्रावधान है. दोनों ही मामलों में जुर्माना लगता है. अपराजिता में दोषी को उम्रकैद की सजा के साथ आर्थिक जुर्माना भुगतना होगा. अंतर– अपराजिता में सजा को सख्त किया गया है. केंद्रीय कानून में जैसा कोई विकल्प नहीं रखा गया है.
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नाबालिग से रेप पर सजा भारतीय न्याय संहिता की धारा 65(1), 65(2), 70(2) में नाबालिग के साथ रेप और गैंगरेप में 20 साल से उम्रकैद और धारा 65(2) में 12 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ बलात्कार के मामले में न्यूनतम 20 साल, उम्रकैद और मृत्युदंड का प्रावधान है. धारा 70(2) में मौत की सजा का प्रावधान है. अपराजिता में तीनों धाराओं को हटाने का प्रस्ताव है. इसमें रेप के सभी दोषियों के लिए मौत की सजा का प्रावधान है. अंतर– केंद्रीय कानून में सजा का वर्गीकरण है. जबकि अपराजिता में सजा को सख्त कर मौत की सजा का प्रावधान है.
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बच्चों के खिलाफ यौन अपराध को लेकर अपराजिता विधेयक में 2012 के पॉक्सो अधिनियम की कुछ धाराओं में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है. इसमें उम्रकैद से लेकर मौत तक की सजा का प्रावधान रखा गया है. प्रक्रिया को मजबूत करते हुए ऐसे मामलो में पुलिस को सात दिन में साक्ष्य अदालतों के समक्ष पेश करने और एक साल में ट्रायल पूरा करने की निर्धारित प्रक्रिया है.
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क्या नहीं 10 में दिन के भीतर किसी भी दोषी को मृत्युदंड यानी फांसी दिए जाने का जिक्र नहीं है. यह जरूर है कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में संशोधन के प्रस्ताव से पुलिस जांच और ट्रायल पूरा करने की डेडलाइन तय कर दी गई है.
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जांच पर पुलिस को डेडलाइन अपराजिता विधेयक में अपराध की जानकारी मिलने के 21 दिन के भीतर पुलिस जांच पूरी करने का प्रावधान है. 21 दिन में जांच नहीं पूरी होने पर अदालत 15 दिन का अतिरिक्त समय दे सकती है, लेकिन पुलिस को इसकी वजह अदालत को लिखित तौर पर बतानी होगी. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में पुलिस को दो माह में जांच पूरी करने का समय दिया गया है. इस अवधि में जांच पूरी नहीं होने पर 21 दिन का और समय मिल सकता है.
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ट्रायल पूरा करने की डेडलाइन अपराजिता में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध के मामले में आरोपपत्र दाखिल होने के एक माह के भीतर ट्रायल पूरा किए जाने की अवधि तय की गई है. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में दो माह का समय दिया गया है. अपराजिता विधेयक में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता में की धाराओं में संशोधन करने संज्ञेय और गैर-जमानती बना दिया गया है. जबकि भारतीय न्याय संहिता में वर्गीकरण है.