मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने कहा कि प्रगति और प्रकृति के बीच सामंजस्य बनाकर ही जलवायु परिर्वतन से सम्बन्धित चुनौतियों से प्रभावी तरीके से निपटा जा सकता है। यह बात मुख्यमंत्री ने आज यहां पर्यावरण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा आयोजित सुदृढ़ हिमालय सुरक्षित भारत, जलवायु परिवर्तन सम्मेलन-2021 की अध्यक्षता करते हुए कही।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण पारिस्थितिकी तंत्र पर विपरित प्रभाव पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए हमें जमीनी स्तर पर ठोस उपाय करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश सरकार सिंचाई सुविधाओं को मजबूत करने, कृषि उत्पादन बढ़ाने, सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार, आर्थिक सुरक्षा और ग्रामीण बुनियादी ढांचे जैसे पर्यावरणीय स्थिरता, जलवायु परिर्वतन अनुकुलन और दीर्घकालिक सामुदायिक सशक्तिकरण पर ध्यान केन्द्रित कर रही है।
जय राम ठाकुर ने कहा कि राज्य में सत्त विकास और पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघलते हैं। वातावरण में कार्बनडाइआॅक्साइड के स्तर को कम करने के लिए प्रदेश सरकार हरित ईंधन जैसे जल विद्युत और सौर उर्जा के प्रयोग पर ध्यान दे रही है। उन्होंने कहा कि प्रदेश जल विद्युत संसाधनों में बहुत समृद्ध है और भारत की कुल क्षमता का लगभग 25 प्रतिशत हिमाचल प्रदेश में है। राज्य की कुल जल विद्युत क्षमता में से अभी तक 10,519 मेगावाट का दोहन किया जा चुका है। उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण को कम करने के लिए प्रदेश में शीघ्र ही राज्य स्वच्छ ईंधन नीति लाई जाएगी।
जय राम ठाकुर ने कहा कि जलवायु परिर्वतन की समस्या से निपटने के लिए सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है। हमें सार्थक ग्लोबल वार्मिंग कानून का समर्थन करना होगा तथा बिजली संयंत्रों की ऊर्जा दक्षता में सुधार के साथ-साथ नवीकरणीय ऊर्जा स्रतों का उपयोग भी बढ़ाना होगा।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने आॅनलाइन माध्यम से डिजिटल जलवायु परिर्वतन सन्दर्भ केन्द्र का शिलान्यास भी किया। भारत में जर्मनी के राजदूत वाल्टर जे. लीनेयर ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण विश्व में कई तरह की प्राकृतिक आपदाएं आ रही हैं। इस समस्या से निपटने के लिए सभी को प्रयास करने की आवश्यकता है। उन्होंने सम्मेलन के आयोजन की सराहना करते हुए कहा कि वैज्ञानिक इस मुददे पर गम्भीरता से विचार करेंगे।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने सीसी एवं डीआरआर पर नाॅलेज नेटवर्क के लिए दिशा-निर्देश भी जारी किए। उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्य योजना भाग-2 और हिमाचल प्रदेश में सीएएफआरआई कार्यक्रम भी लाॅंच किया।
स्टूडेंट एजुकेशनल एण्ड कल्चरल मूमेंट आॅफ लद्दाख के अध्यक्ष सोनम वांगचुक ने हिमाचल प्रदेश द्वारा पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में किए गए महत्वाकांक्षी उपायों की सराहना की। उन्होंने जलवायु साक्षरता की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि आपदाओं को रोकने के लिए समय पर सार्थक कदम उठाए जाने चाहिए। शैक्षणिक शोध संस्थानों में स्थानीय क्षेत्रों से सम्बन्धित चुनौतियों का अध्ययन किया जाना चाहिए।
राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण के महानिदेशक कमल किशोर ने कहा कि हर क्षेत्र की आपदा प्रबन्धन योजना बनाई जानी चाहिए। उन्होंने सभी राज्यों में राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल के गठन की आवश्यकता पर बल दिया।
वरिष्ठ सलाहकार विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार डाॅ. अखिलेश गुप्ता ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग विश्वभर में एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने बहु जोखिम चेतावनी प्रणाली तंत्र विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया।
अतिरिक्त मुख्य सचिव पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी प्रबोध सक्सेना ने मुख्यमंत्री और सभी गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत किया और सम्मेलन के बारे में विस्तृत जानकारी दी।
निदेशक पर्यावरण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सुदेश कुमार मोकटा ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया।
इस अवसर पर मुख्य सचिव राम सुभग सिंह, उत्तराखण्ड विस्थापन बोर्ड के उपाध्यक्ष डाॅ. एसएस नेगी, संयुक्त सचिव राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण कुणाल सत्यार्थी, सचिव पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन उत्तर प्रदेश आशीष तिवारी, पूर्व विशेष सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय आरआर रश्मी, राजस्थान के ट्री-मैन, पदमश्री हिम्मताराम भांभू, आईआईएस के वैज्ञानिक डाॅ. अनिल कुलकर्णी, निदेशक जलवायु परिवर्तन डाॅ. आशीष चतुर्वेदी, विभिन्न सचिव, विश्वविद्यालय के कुलपति, विभिन्न राज्यों के प्रतिभागी और अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।
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