परंपरा के मुताबिक शनिवार रात्रि शूलिनी माता की बड़ी बहन के घर में कल्याणा वर्ग व प्रशासन की तरफ से तहसीलदार गुरमीत नेगी मौजूद थे। तभी करीब 11 बजे पंडित जी को खेल आई व आग के अंगारों में खेलते हुए उन्होंने पूछे गए प्रश्नों के जवाब दिए । मां ने कहा कि जहां कोरोना काल मे ये सब नामुमकिन लग रहा था वहां भी मेरी यात्रा निकाली गई उससे मैं खुश हूं । इसमें मेरी परंपरा का निर्वहन किया है व हर बात का ध्यान रखा गया है । मां ने कहा कि वो पंडित जी व कल्याणा वर्ग से भी खुश है कि उन्होंने इसमें उन्होंने अपनी भागीदारी बनाए रखी। मां ने सोलन के लोगों से भी किस प्रकार की कोई नाराजगी नही जताई व अपनी प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा कि जिस प्रकार सोलन की जनता ने भी अपना पूरा सहयोग दिया है उससे मैं खुश हूं और मां ने सोलन की जनता को उनकी खुशहाली आशीर्वाद दिया ।
मां ने जिला प्रशासन की पीठ थपथपाते हुए कहा कि डीसी सोलन व उनकी टीम ने जिस तरीके से इसका आयोजन किया है उससे वो खुश है और उनके किसी भी कार्य से नाराज नही है ।
किस तरह होते है मां से सवाल जवाब
शनिवार की रात को गंज बाजार स्तिथ अपनी बड़ी बहन के घर मे शूलिनी माता जब विराजमान होती है तो उनके समक्ष कल्याणावर्ग, सोलन की जनता व प्रशासन भी मंदिर के प्रांगण में मौजूद रहता है । लेकिन इस बार मंदिरों में किसी अन्य को जाने की अनुमति नही है तो इस बार कल्याणावर्ग व प्रशासन ही वहां मौजूद रहा।
देर रात करीब 11 बजे जब वहां आग लगाई जाती है तो शूलिनी मंदिर के पंडित रामस्वरूप शर्मा जी को खेल आती है व ऐसा माना जाता है उस समय उनमे माता शूलिनी का वास होता है । पंडित जी जलती आग में कूद जाते है व अंगारों में चलने लगते है । उसी समय उनसे प्रश्न पूछने का सिलसिला भी शुरू हो जाता है जो कि कल्याणा वर्ग करता है । उस समय जो भी माता जवाब देती है उसे ही सर्वमान्य माना जाता है और उसे माता का आशीर्वाद मानकर स्वीकार किया जाता है ।
इस बार लोगों के लिए खुशी की बात ये रही कि माता सभी से प्रसन्न है जबकि माता के डोले का पूरे सोलन से परिक्रमा न करवाने को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे।
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