प्रेस विज्ञप्ति भारत की जनवादी नौजवान सभा, सोलन…
अखिल भारतीय नौजवान सभा (DYFI) जिला कमेटी सोलन ने जिलाधीश कार्यालय के मध्यम् से रक्षा मंत्री को ज्ञापन दिया।यह ज्ञापन सेना भर्ती में लागू की गई अग्निपथ योजना के दुष्परिणामों व इस योजना को वापस लेने के बारे में दिया गया । पिछले दिनों में भारत सरकार द्वारा सेना भर्ती के लिए एक नई “Tour of Duty” योजना जिसका नाम “अग्निपथ” रखा गया लायी गई है। जिससे भारतीय सेना का ठेकाकरण व युवाओं के भारतीय सेना में स्थाई रोजगार व सेना में भर्ती होकर देश सेवा के अवसर को खत्म किया गया है। भारतीय सेना द्वारा सैनिकों के एक नए बैच को लेने के लिए किसी भी भर्ती अभियान का संचालन किए दो साल से अधिक समय हो गया है, जबकि सेना से सेवानिवृत्त होने वाले सैनिकों की संख्या में कमी नहीं हुई है, जैसा कि रक्षा मंत्रालय द्वारा सूचित किया गया है। इस सब के बीच भारत सरकार ने ‘अग्निपथ’ योजना की घोषणा की जिसके माध्यम से युवाओं को सशस्त्र बलों में भर्ती किया जाएगा। लेकिन क्या इस कदम से देश के युवाओं की समस्याएं हल हो जाएंगी? जवाब होगा नहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने पिछले दिनों घोषणा की थी कि सरकार को अगले डेढ़ साल में मिशन मोड में 10 लाख लोगों की भर्ती करनी है। लेकिन भाजपा नेतृत्व द्वारा पूर्व में किए गए वादों के विस्तार में इस घोषणा को देखने से यह भी एक अस्पष्ट बयान लगता है न कि कोई मिशन या योजना।
भारतीय सेना राष्ट्र की संप्रभुता की रक्षा के लिए एक प्रतिष्ठित संस्था होने के साथ-साथ हर साल लाखों लोगों को रोजगार देने का एक माध्यम भी है। पिछले वर्षों में भर्ती के आयोजन में विफलता न केवल भारतीय सेना के संचालन के लिए एक जोखिम था, बल्कि इन छात्रों और युवा उम्मीदवारों के लिए भी बहुत अनुचित था जो वर्षों से तैयारी कर रहे हैं और रोजगार की तलाश कर रहे हैं। अब अग्निपथ योजना की घोषणा के माध्यम से कैबिनेट की दिलचस्पी सशस्त्र बलों में भी संविदात्मक नौकरियों को शुरू करने में है। अग्निवीर (नए रंगरूटों के लिए कार्यकाल) को संबंधित सेवा अधिनियमों के तहत केवल 4 वर्ष की अवधि के लिए नामांकित किया जाएगा। हालांकि रंगरूटों को एकमुश्त ‘सेवानिधि’ पैकेज का भुगतान किया जाएगा, जिसमें वेतन का एक हिस्सा शामिल होता है जो उनसे वापस लिया जाएगा और एक हिस्सा सरकार द्वारा योगदान दिया जाएगा। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि ग्रेच्युटी और पेंशन लाभ के लिए कोई अधिकार नहीं होगा। किसी भी क्षेत्र में कार्यबल के संविदाकरण को उन अधिकारों के लिए खतरे के रूप में देखा जाना चाहिए जिनकी गारंटी किन्ही भी श्रमिकों को दी जानी चाहिए। सशस्त्र बलों के मामले में, एक नौकरी जिसके लिए वर्षों के प्रशिक्षण और दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है, संविदाकरण से न केवल बलों की गुणवत्ता में गिरावट आएगी, साथ ही रंगरूटों के अधिकार भी सवालों के घेरे में होंगे।


