प्राचीन गुरुकुल शिक्षा पद्धति को अपनाने से होगी सभ्य समाज की स्थापना : कृष्ण कांत
जो व्यक्ति सदा परमात्मा को याद रखता है और प्रभु का भजन करता है । वह कभी सांसारिक मोह माया में नहीं उलझ सकता और ईश्वर भक्ति ही उसकी सच्ची सम्पति है । यह बात शिव मंदिर समिति हाब्बन रोड़ राजगढ़ द्वारा आयोजित श्री भद भागवत महापुराण में प्रवचन के दौरान कृष्ण कांत शांडिल्य ने कथा प्रवचन करते हुए कही उन्होंने कहा कि हमे दिव्य परोपकार करते हुए सत्यता व पवित्रता का जीवन जीते हुए नित्य भक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ना चाहिए । भाई ,बन्धु मित्र केवल इस संसार तक जीव का साथ दे पाते है । उससे आगे तो जीव आत्मा अकेले विचरण करती है । वहां केवल ईश्वर नाम की सम्पदा जीव का साथ देती है । इसलिए जितना समय मिले अपने कल्याण के लिए इस सम्पदा को संग्रहित करते रहना चाहिए और इस सम्पदा को संगृहीत करने का सबसे सरल साधन है । हर पल प्रभु का नाम जपते रहना ।
कृष्ण कांत शांडिल्य ने भक्तों से कहा कि भागवत कथा का फल सुनने मात्र से नही बल्कि इसकी शिक्षाओं को में अपनाने से मिलता है कृष्ण कांत शांडिल्य का कहना था कि हमें केवल कथा में व्यवहार के लिए नही जाना चाहिये बल्कि श्रवण व मनन के लिए जाना चाहिये और प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन काल में कम से कम एक बार श्रीमद भागवत कथा का श्रवण अवश्य करना चाहिए और सामर्थ्य होने पर एक बार श्रीमद् भागवत कथा का पाठ आयोजित भी कराना चाहिए। ऐसा करने वाले यश, मान और कीर्ति में वृद्धि होती है उसके पूर्वज आनंदित होकर मोक्ष को प्राप्त करते हैं और आने वाली पीढ़ी का भविष्य उज्जवल होता है। उनका कहना था कि आज के समय मे मोक्ष प्राप्ति का सबसे सरल व सुगम साधन श्री मद भागवत कथा का आयोजन एवं श्रवण है । शांडिल्य ने कहा कि आज हमारी प्राचीन संस्कृति व पारिवारिक व्यवस्था पर पाश्चात्य सभ्यता हावी हो गई है जो आने वाले समय के लिए अच्छे संकेत नहीं है उन्होंने सभी से आवाहन किया कि वे अपनी प्राचीन भारतीय संस्कृति को अपनायें और युवाओं को भी इसे अपनाने के लिए प्रेरित करें शांडिल्य ने कहा कि हमारी प्राचीन शिक्षा पद्धति को भी पाश्चात्य सभ्यता का ग्रहण लग गया है । और अब समय आ गया है कि हमें प्राचीन गुरुकुल शिक्षा पद्धति को अपनाना होगा तभी एक सभ्य संस्कारित समाज की स्थापना हो सकती है । उन्होंने सभी से अपील की कि वे अपने घरों में नित्य प्रति भजन कीर्तन व संध्या आदि करने का नियम बनाए । और परिवार के सभी सदस्य मिल बेठ कर इस कार्य को करें । इससे परिवार व समाज में एकता बनीं रहेगी और भाईचारे की भावना पैदा होगी
शांडिल्य ने कहा कि श्रीमदभागवत चार वेदों, छः शास्त्रों व 18 पुराणों का सार रूप है।उन्होंने कहा कि भगवान वेदव्यास ने वेद, शास्त्र, उपनिषद, महाभारत, पुराणों की रचना के बाद उन सबका सार रूप श्रीमदभागवत लिखा। जिसमें 18 हजार श्लोक है, जिससे एक लाख 76 हजार शब्द है और 29 छंदों में इस पवित्र ग्रन्थ की रचना की गई है।