पझोता मे तीन दिवसीय जात मेला कोटी टिम्बा आरंभ
ठियोग ,चोपाल व पच्छाद विधानसभा क्षेत्रों की सीमा पर कोटी टिंम्बा में रासू मांदर क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी मां बागेश्वरी के नाम पर लगने वाला तीन दिवसीय धार्मिक पांरपरिक जात मेला कोटी टिम्बा आरंभ हो गया । इस मेले का मुख्य आर्कषण तीर कमान से खेला जाने वाला संगीतमय पारंपरिक ठोडा खेल रहेगा मेले का शुभारंभ माता बागेश्वरी की छड़ी यात्रा के साथ हुआ इस मेले मे बागेश्वरी के दो मंदिरो भडोली व बघेशर से माता की छडी आती है । जिसमे माता की छड़ी को मंदिर परिसर से मेला मैदान तक क्षेत्र के लोगो द्वारा एक शौभायात्रा के रूप मे पांरपरिक वाद्ययंत्रो के साथ लाया जाता था। और मेला मैदान मे पहुचने के बाद गुर के माध्यम से माता की अलौकिक खेल के माध्यम से माता से मेला आरंभ करने की अनुमति मांगी जाती । उसके बाद ठौडा खेल के लिए मेला मैदान का शुद्विकरण जिसे स्थानीय भाषा मे जुबडी जवाडना कहा जाता किया जाता ।
इस मेले मे जिन ठोडा दलो द्वारा ने अपने जौहर का प्रर्दशन किया जाना है उसमे पाशी डोडा दल किशोर बलसन व शादी ठोडा दल नाहौल ठियोग शामिल है इन दौनो दल दो दिन तक मेला मेदान मे संगीतमय ठौडा नृत्य व खेल का प्रर्दशन किया जाएगा । ठोडा दल जब मेला मैदान में प्रवेश करते हैं तो एक विशेष प्रकार का संगीत बजता है जिसमें ठोडा दल के लोग हाथ में डांगरा लहराते हुये एक दुसरे को स्थानीय भाषा में ठोडा खेलने के लिए ललकारते हैं । और स्थानीय भाषा में ही एक दूसरे की ललकार का उतर देते हैं । मेला कमेटी के सदस्य राकेश ठाकुर ने बताया कि यह मेला रासू मांदर चौपाल व ठियोग तीन क्षेत्रो के लोगो के मनोरंजन का साधन है और इस बार मेला कमेटी द्वारा मेले को नया रूप देने का प्रयास किया गया । इस बार महिलाओं के लिए रस्सा कस्सी प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया था क्योंकि इस दूर दराज क्षेत्र में ऐसे मेले ही स्थानीय लोगो के लिए मंनोरंजन का साधन होते है ।
इसके साथ साथ ग्रामीण क्षेत्रों में लगने वाले यह मेले का व्यापारिक महत्व भी रखते हैं । क्योंकि इन मेलो में हर तरह की दुकानें लगती है । और लोगों को एक ही स्थान पर दैनिक उपयोग की वस्तुएं खरीदने को मिलती है । यहां काबिले जिक्र है कि इन दिनों यहां पूरे क्षेत्र में बिशू मेलो का सीजन अपने योवन पर है पदम श्री एवं प्रसिद्ध साहित्यकार एवं लेखक विद्या नंद सरैक के अनुसार यहां पहाड़ी क्षेत्रो इन दिनों बिशू मेले का सीजन चला हुआ है । और यह बिशू मेले यहां कुल देवता ,ग्राम देवता के नाम पर लगते हैं । और इन मेलो का आयोजन कुछ स्थानों पर हर साल व कुछ स्थानो पर तीसरे साल होता है । और इन मेलो में ठौड़ा खेल का आयोजन अनिवार्य होता है । ऐसा ना करने पर देव दोष लगता है ऐसा माना जाता है । इस लिए हर मेले में ठौड़ा खेल का आयोजन होता है । जिन दो दलों के बीच यह खेल खेला जाता है उन्हें एक दल को शाठड़ व एक को पाशड़ कहा जाता है । शाठड़ दल के लोग अपने आपको कौरवों का वंशज व पाशड़ दल के लोग अपने आप को पांडवों का वंशज मानते हैं । और ठोड़ा खेल कभी भी पाशड़ पाशड़ व शाठड़ शाठड़ आपस में नहीं खेलते शाठड़ दल पाशड़ के साथ व पाशड़ दल शाठड़ के साथ ही ठोड़ा खेल खेलते हैं और इसके लिए विशेष तरह के परिधान होते हैं । इसके साथ साथ ठोड़ा दलों के रात्रि ठहराव की व्यवस्था को स्थानीय भाषा में ठीला कहा जाता है । इस व्यवस्था में एक दल जितने लोगों आते हैं उन्हें एक गांव के घरों में बांट दिया जाता है । और मेले में घर का मुखिया उपस्थित रहता है और वे उन्हें अपने घर ले जाता है। यानि अगर एक ठौड़ा दल में 70 लोग आये है और उस गांव में 12 घर है तो प्रत्येक घर में लगभग 6 व्यक्ति जाएंगे । कुछ स्थानों पर इनका भोजन का प्रबंध सामुहिक यानि एक स्थान पर होता है और कुछ स्थानों पर अलग अलग घरों में ही भोजन बनाया जाता है । उसके बाद रात्रि को सिरमौरी नाटी यानि महफ़िल सजती है । जिसमें सभी मिल जुल नृत्य करते हैं ।