धन्यभागी होना ही धनतेरस का संदेश – गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर

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धनतेरस से दीपावली का त्यौहार आरंभ होता है। प्रकृति नित्य उत्सव मनाती है। पक्षी चहचहाते हैं, पुष्प खिलते हैं, नदियाँ बहती है। हमें भी प्रतिदिन ऐसा ही उत्सव अपने जीवन में मनाना चाहिए। संसार में सबसे प्रेमपूर्वक मिलें, प्रसन्न रहें और जो भी आपसे मिलें वो भी प्रसन्न हो जाए, यही उत्सव है।

धनतेरस क्या है?
हमारे वेदों में कहा गया है – धन अग्नि है, धन वायु है, धन सूर्य है, धन वसु है!
हमारे भीतर का जो तेज है, यह अग्नि धन है। हमारे भीतर जो जोश, उत्साह, उमंग है, यह धन है। इसी प्रकार वायु धन है, सूर्य धन है। आज सौर ऊर्जा का बहुत महत्त्व है। 50-60 वर्ष पूर्व हमने सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलना सीखा, विद्युत भी धन है। यदि घर में बिजली न हो तो न फोन चलेगा, न रेफ्रिजरेटर चलेगा। इन सब को चलाने के लिए हमें विद्युत की आवश्यकता है, यह भी एक प्रकार का धन है। फिर वसु, यदि जीवन में प्राण नहीं है तो क्या वह जीवन होगा? नहीं! इस जीवनी ऊर्जा को वसु कहते हैं। यह भी धन है। हमने केवल रूपये-पैसे, सोना-चाँदी व आभूषणों को ही धन माना। यह जीवन जो हमें अपने माता-पिता से प्राप्त हुआ है, यह भी धन है। जीवन में धन्यभागी अनुभव करना ही सबसे बड़ा धन है। यदि आप अभाव में ही बने रहते हैं तो अभाव ही बढ़ता रहेगा। जो कुछ भी आपको अपने जीवन में प्राप्त हुआ है उसके लिए धन्यभागी होना ही धनतेरस का संदेश है।

अपनी चेतना के स्वभाव को जानें
भारतीय सभ्यता में त्यौहार मनाने की पद्दति अनादिकाल से चली आ रही है। इसमें कुछ सार है, कुछ रस है और कुछ तत्त्व भी है। लोग अपने घरों की सफाई करते हैं। घर में सजावट एवं पूजा-पाठ करते हैं। परिवारजनों व मित्रों को घर बुलाते हैं या उनके यहाँ जाते हैं। एक साथ भोजन करते हैं, पटाखे जलाते हैं। ऐसा करने से जीवन में एक उमंग बनी रहती है।

हर त्यौहार आपको एक अवसर प्रदान करता है जिससे आप अपने मन को स्वच्छ कर सकें, मन के अंदर के सभी राग-द्वेष को समाप्त कर सकें। प्राय: ऐसा देखा जाता है कि लोग त्यौहार के दिन भी मुँह लटकाकर बैठे रहते हैं। सभी पर्व आपको अपने आप को जानने का सकेंत देते हैं। हमारा स्वभाव क्या है? सच्चिदानंद! यह जान लेना कि मैं नित्य शुद्ध, बुद्ध व मुक्त हूँ। यही हमारी चेतना का सच्चा स्वभाव है। प्रसन्नचित्त रहें। बार-बार अपने इस गुण का स्मरण करते जायें और अपने भीतर विश्राम करते जायें।

अपने पास जो भी धन-संपत्ति है। धनतेरस के दिन उसका स्मरण कर लें। ऐसा करने से मन में जो भी अभाव अथवा लोभ है वो मिट जाता है। जब तक मन में अभाव न मिटे तब तक दरिद्रता बनी रहती है। जब यह सब मिट गया, तब हममें तृप्ति झलकती है। ज्ञान का दीपक जल उठता है।
अपने आस-पास मधुरता बाँटे
इस दीपावली ज्ञान का दीप जलायें और अपने आस-पास मधुरता बाँटे। हमारी वाणी मधुर हो, हमारा व्यवहार मधुर हो। हम इस संसार को और अधिक मधुर बनाएँ। एक ऐसा समाज जिसमें किसी से कोई वैर न हो, कहीं कोई हिंसा न हो। ऐसा वातावरण जहाँ सब स्वयं को सुरक्षित अनुभव करें। इस धनतेरस एक सुंदर, सुशिक्षित, स्वस्थ समाज का संकल्प लें। जहाँ सब को शारीरिक, मानसिक और आत्मिक आरोग्य प्राप्त हो। मन स्वच्छ रहे तो माँ लक्ष्मी भी प्रसन्न रहेगी। मन में यदि राग, द्वेष, क्रोध है तब लक्ष्मी जी भी हम से दूर चली जाती है। मन को स्वच्छ रखने के लिए ज्ञान, गान व ध्यान अवश्य करें। आने वाली पीढ़ी को हम खुशहाल संसार उपहार के रूप में देकर जायें। यह हमारा संकल्प हो।

Vishal Verma

20 वर्षों के अनुभव के बाद एक सपना अपना नाम अपना काम । कभी पीटीसी चैनल से शुरू किया काम, मोबाईल से text message के जरिये खबर भेजना उसके बाद प्रिंट मीडिया में काम करना। कभी उतार-चड़ाव के दौर फिर खबरें अभी तक तो कभी सूर्या चैनल के साथ काम करना। अभी भी उसके लिए काम करना लेकिन अपने साथियों के साथ third eye today की शुरुआत जिसमें जो सही लगे वो लिखना कोई दवाब नहीं जो सही वो दर्शकों तक