जिला परिषद से लेकर पार्षद के चुनाव ससुर व दामाद की इज्जत दाव पर, राजेश कश्यप और धनीराम शांडिल फिर आमने-सामने

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थर्ड आई टुडे (विशाल वर्मा)चुनावी जंग में सभी उतर चुके है और अपनी अपनी जीत का दावा कर रहे है। कोई जीतेगा और कोई हारेगा भी, ससुर और जवाईं के लिए फिर से एक-दूसरे को पटखनी देने का मौका मिल गया है। जिसके लिए दोनों तैयार भी दिख रहे है। विधानसभा चुनाव में 671 वोटों से हार का मुंह देखने वाले राजेश कश्यप किसी भी सूरत में अपने ससुर विधायक धनीराम शांडिल को छोड़ने के मूड में नजर नहीं आ रहे है।  

राजेश कश्यप ने जब अपना विधानसभा का पहला चुनाव लड़ा था तब वो राजनीति के क्षेत्र में बिलकुल नए थे और वो उस समय डॉक्टर की नौकरी को छोड़ कर आए थे। उस दौरान वो राजनीति की एबीसीडी भी नहीं जानते थे लेकिन अब सरकार के भी तीन साल हो चुके है और उनके भी इस फील्ड मे इतने ही साल। राजनीति को अब वो काफी हद तक समझ भी चुके है और इसके पैंतरों को भी। ऐसे में लगता है कि कश्यप अपने ससुर की पीठ लगाने की पूरी तैयारी में है।   

जबकि बात कि जाए विधायक धनीराम शांडिल कि तो वो फिलहाल अपने चहेतों को टिकट देने में जरूर कामयाब हो गए है लेकिन जिन्हें नहीं टिकट  मिला उनकी नाराजगी उनके उम्मीदवारों पर भारी पड़ सकती है। उनके उम्मीदवार जीतने में कामयाब रहे तो उनका राजनैतिक कद जरूर बढ़ेगा लेकिन हार गए तो उनके चयन पर भी उंगली जरूर उठेगी। अभी उन्हे अनुशाशन कमेटी के चैयरमैन से आउट करके इलेक्शन स्ट्रेटजी कमेटी का सदस्य बनाया गया है। अगर वो यहीं पर पंचायती चुनावों की इलेक्शन स्ट्रेटजी नहीं बना पाए तो हो सकता है इन्हे इससे भी बाहर कर दिया जाए। क्योकि 2 साल बाद हिमाचल में विधानसभा के चुनाव है और इसी कमेटी के जरिये कॉंग्रेस सता मे वापसी देख रही है। अगर ये चुनाव कॉंग्रेस हार गई तो इसकी गाज गिरना धनीराम शांडिल पर लाज़मी है।

गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा से डॉ राजेश कश्यप उम्मीदवार थे व धनीराम शांडिल कॉंग्रेस से। धनीराम शांडिल की बेटी गीतांजली कश्यप से राजेश कश्यप ने विवाह किया है और इस कारण रिश्ते में राजेश कश्यप उनके दामाद लगते है। पिछले विधानसभा चुनाव में ससुर-दामाद का ये चुनाव सुपरहिट रहा था और जिस कारण सोलन की सीट हॉट सीट बन गई थी। लेकिन ससुर ने अपने अनुभव का फायदा उठाते हुए सभी को साथ लेकर चलने में कामयाब होने के कारण वो 671 वोटों से जीत गए थे। लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी है सोलन कॉंग्रेस मे गुटबाजी चर्म सीमा पर है। जो कभी उनके साथ चलते थे अब वो सब उनके खिलाफ ही झंडा बुलंद कर चुके है। जिसका खामियाजा उन्हे पंचायती चुनावों से लेकर कुछ माह बाद होने वाले निगम के चुनावों में भी देखने को मिल सकता है। अगर वो सभी को जीतने में कामयाब रहे तो जरूर उनका राजनैतिक कद जरूर बढेगा।    

फिलहाल एक बार फिर से अपने अपने उम्मीदवारों के साथ दोनों दंगल में है अब देखना होगा जीत और हार का किसके सर पर सजेगा ताज और कौन बनेगा बाज ….   

 

Vishal Verma

20 वर्षों के अनुभव के बाद एक सपना अपना नाम अपना काम । कभी पीटीसी चैनल से शुरू किया काम, मोबाईल से text message के जरिये खबर भेजना उसके बाद प्रिंट मीडिया में काम करना। कभी उतार-चड़ाव के दौर फिर खबरें अभी तक तो कभी सूर्या चैनल के साथ काम करना। अभी भी उसके लिए काम करना लेकिन अपने साथियों के साथ third eye today की शुरुआत जिसमें जो सही लगे वो लिखना कोई दवाब नहीं जो सही वो दर्शकों तक