भाजपा के बगावती चेतन बरागटा रणनीतिकार बनते नजर आ रहे हैं। पहले, टिकट कटने पर आंखों से सैलाब उमड़ा तो समर्थकों सहित हर कोई भावुक हो गया। जनसभाओं में पिता नरेंद्र बरागटा के निधन के तुरंत बाद पार्टी द्वारा प्रचार में झौंके जाने की बात कही तो जनता दूसरी बार भी भावुक होती नजर आई। निश्चित तौर पर दोहरी सहानुभूति जुटाने की कोशिश हो रही है। बेशक ही चुनाव का नतीजा कुछ भी रहे, लेकिन सुर्खियों में चेतन बरागटा ही बने हुए हैं। संयोग से चुनाव चिन्ह भी सेब मिला है, जो पूरे इलाके की पहचान समूचे देश में करवाता है।
हर रोज एक ऐसा घटनाक्रम सामने आ रहा है, जिससे बरागटा लाइम लाइट में आ रहे हैं। शुक्रवार शाम बीजेपी के पदाधिकारियों के सामूहिक इस्तीफ से चर्चा में आए तो शनिवार को टिक्कर में एक जनसभा में दिवंगत वीरभद्र सिंह अमर रहे के नारे लगे। बता दे कि टिक्कर को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। खुद भी चेतन पिता नरेंद्र बरागटा के साथ वीरभद्र सिंह अमर रहे के नारे लगाते नजर आए। इससे जुड़ा वीडियो सोशल मीडिया में चंद मिनटों में ही वायरल होने लगा। एक चाणक्य के तौर पर ये भी बात चर्चा में है कि आखिर वो भाजपा के खिलाफ एक भी शब्द क्यों नहीं बोल रहे हैं। साथ ही गले में भगवा पटका पहनकर प्रचार में जुटे हुए हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि दिवंगत वीरभद्र सिंह हिमाचल के जन नायक रहे हैं। उनकी शान में नारे लगाने का हक हर शख्स को है। मगर चुनावी बेला में इस तरह की बात आम लोगों को समझ नहीं आ रही। एक संशय इस बात पर भी है कि कहीं 1990 के चुनाव के इतिहास को चर्चा में लाने की कोशिश तो नहीं हो रही है। उस समय कांग्रेस प्रत्याशी रोहित के दादा राम लाल ठाकुर ने जनता दल के टिकट पर वीरभद्र सिंह को चुनाव हराया था।
यह अलग बात है कि उस समय वीरभद्र सिंह ने दो हलकों से चुनाव लड़ा था, जिसमें वो रोहडू से विजयी हुए थे। राजनीतिक जीवन में एकमात्र चुनाव कोटखाई-जुब्बल से हारने के बाद दिवंगत वीरभद्र सिंह ने दोबारा इस हलके का रुख नहीं किया था। रोहडू हलके के आरक्षित होने के बाद वो सोलन के अर्की चले गए।
कुल मिलाकर ये तय है कि इस समय कांग्रेस प्रत्याशी रोहित ठाकुर व भाजपा की नीलम सरकैक की तुलना में चेतन बरागटा ही मीडिया व मतदाताओं की अटेंशन लेने की कोशिश कर रहे हैं।
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