कृषि कानून के विरोध में किसान संगठनों का आंदोलन 21वें दिन भी जारी है। वहीं किसान आंदोलन को लेकर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। शीर्ष अदालत ने इस मामले में भारतीय किसान यूनियन और कई अन्य किसान संघों को मामले में पक्षकार के रूप में बनाने की अनुमति दी है। चीफ जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की बेंच ने सुनवाई की। कोर्ट ने केंद्र, पंजाब, हरियाणा को नोटिस जारी किया और उन्हें कल तक जवाब देना है।
आज हुई सुनवाई में याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट में शाहीन बाग केस का हवाला दिया गया। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि ये एक महत्वपूर्ण विषय है। सॉलिसिटर जनरल ने अदालत से अपील की है कि हरीश साल्वे ऐसे ही एक मामले में दलील देना चाहते हैं। हालांकि, जज की ओर से हरीश साल्वे को बहस में शामिल करने से इनकार कर दिया गया।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने पूछा कि आप चाहते हैं बॉर्डर खोल दिए जाएं। जिसपर वकील ने कहा कि अदालत ने शाहीन बाग केस के वक्त कहा था कि सड़कें जाम नहीं होनी चाहिए। बार-बार शाहीन बाग का हवाला देने पर चीफ जस्टिस ने वकील को टोका, उन्होंने कहा कि वहां पर कितने लोगों ने रास्ता रोका था? कानून व्यवस्था के मामलों में मिसाल नहीं दी जा सकती है। चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान पूछा कि क्या किसान संगठनों को केस में पार्टी बनाया गया है।
अदालत में वकील जीएस मणि ने कहा कि मैं किसान परिवार से आता हूं, इसलिए अपील की है। इस पर कोर्ट ने उनसे पूछा कि आपकी जमीन कहां हैं, वकील ने बताया कि उनकी ज़मीन तमिलनाडु में है। जिसपर चीफ जस्टिस ने कहा कि तमिलनाडु की स्थिति को पंजाब-हरियाणा से नहीं तोला जा सकता है। साथ कोर्ट ने पूछा कि रास्ते किसने बंद किए हैं, जिसपर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि किसान प्रदर्शन कर रहे हैं और दिल्ली पुलिस ने रास्ते बंद किए हैं। जिसपर CJI ने कहा कि जमीन पर मौजूद आप ही मेन पार्टी हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वो किसान संगठनों का पक्ष सुनेंगे, साथ ही सरकार से पूछा कि अबतक समझौता क्यों नहीं हुआ। अदालत की ओर से अब किसान संगठनों को नोटिस दिया गया है, अदालत का कहना है कि ऐसे मुद्दों पर जल्द से जल्द समझौता होना चाहिए। अदालत ने सरकार और किसानों के प्रतिनिधियों की एक कमेटी बनाने को कहा है, ताकि दोनों आपस में मुद्दे पर चर्चा कर सकें। सुनवाई के दौरान किसान संगठनों के नेताओं ने कहा कि सरकार को तीनों कृषि सुधार कानूनों को वापस ले लेना चाहिए और फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी दर्जा देना चाहिए। अब कल इस मामले में फिर सुनवाई होगी।
वहीं सिंघू बॉर्डर पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए किसान नेता जगजीत डल्लेवाल ने कहा कि सरकार कह रही है कि वह इन कानूनों को वापस नहीं लेगी, हम कह रहे हैं कि हम आपसे ऐसा करवाएंगे। उन्होंने कहा कि हम बातचीत से नहीं भाग रहे हैं लेकिन सरकार को हमारी मांगों पर ध्यान देना होगा और ठोस प्रस्ताव के साथ आना होगा। कई अन्य किसान नेताओं ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया और लोगों से आह्वान किया कि 20 दिसंबर को उन किसानों को श्रद्धांजलि दें, जिन्होंने प्रदर्शन के दौरान अपनी जान गंवा दी।
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