एम् एम् मेडिकल कॉलेज विभाग द्वारा “विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस” मनाया गया
एम् एम् मेडिकल कॉलेज में मानसिक स्वास्थ्य पर हुई कार्यशाला में बताई जिंदगी की अहमियत और जिंदादिली से जीने के राज
एम् एम् यूनिवर्सिटी, सोलन के रजिस्ट्रार श्री अजय सिंघल जी ने बताया कि हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी एम् एम् मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सा विभाग द्वारा “विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस” मनाया गया। यह कार्यक्रम इस वर्ष के विषय “चेंज द नैरेटिव” पर केन्द्रित रहा। इस आयोजन को चिह्नित करने के लिए तैयारियां और अन्य गतिविधियां एक दिन पहले ही शुरू हो गई थीं, जब छात्रों ने कार्यक्रम स्थल के परिसर में दो रंगोलियां बनाना शुरू किया। श्री अजय सिंघल जी ने बताया कि लोगों को जागरूक करने के लिए हर वर्ष 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है, ताकि लोग जिंदगी की अहमियत समझें और जिंदादिली से जिएं। मौजूदा समय में दुनिया भर में आत्महत्या के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। आत्महत्या एक प्रमुख मुद्दा है, जिसे समाज से निकालने के लिए लंबे समय से कई तरह की कोशिश की जा रही हैं। इस दिन को मनाने का खास मकसद इस बात को लोगों तक पहुंचाना है कि आत्महत्याओं को रोका जा सकता है। साथ ही उन्हें यह भी बताना है कि आत्महत्या के अलावा जीवन में और भी बेहतर विकल्प हैं।
कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती वंदना और दीप प्रज्ज्वलन से हुई। सभी संकाय सदस्य, अतिथि वक्ता, प्रतिनिधि, पी.जी.,एमबीबीएस और बी.एस.सी. के छात्र इस आयोजन का हिस्सा बने।
कार्यक्रम में उपस्थित गणमान्य व्यक्ति जिनमें डॉ. रवि चंद शर्मा, प्रिंसिपल एवं प्रोफेसर, मनोचिकित्सा विभाग, डॉ. जे.एस. संधू, उप प्राचार्य और प्रोफेसर, फिजियोलॉजी विभाग, डॉ. अमीषा शर्मा, डीन, छात्र कल्याण और प्रोफेसर, माइक्रोबायोलॉजी विभाग एवं डॉ. एस.सी. चड्ढा, उप चिकित्सा अधीक्षक और प्रोफेसर, मेडिसिन विभाग आदि मौजूद रहे।
स्वागत भाषण और इस वर्ष के विषय “चेंज द नैरेटिव” का परिचय मनोचिकित्सा विभाग की डॉ. रवलीन कौर जग्गी द्वारा दिया गया। डॉ. रमनदीप कौर, सहायक प्रोफेसर, मनोचिकित्सा विभाग ने परिचयात्मक व्याख्यान दिया। उन्होंने आत्महत्या की महामारी विज्ञान पर बात की और कहा कि आत्महत्या एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है, विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें, तो वैश्विक स्तर पर हर वर्ष आत्महत्या के कारण सात लाख से अधिक मौतें होती हैं। आत्महत्या से केवल एक व्यक्ति की ही मृत्यु नहीं होती, बल्कि प्रत्येक आत्महत्या के दूरगामी सामाजिक, भावनात्मक और आर्थिक परिणाम होते हैं, और यह दुनियाभर में व्यक्तियों और समुदायों को गहराई से प्रभावित करता है, इस कारण इसके रोकथाम के उपाय करना जरूरी है ।
डॉ. काजलप्रीत कौर, सीनियर रेजिडेंट, मनोचिकित्सा विभाग ने जोखिम कारकों और आत्महत्या की रोकथाम के लिए क्यूपीआर आधारित गेटकिपर प्रशिक्षण पर व्याख्यान दिया। मनोचिकित्सा विभाग के जूनियर रेजिडेंट्स द्वारा “चेंज द नैरेटिव” विषय पर प्रकाश डालते हुए एक नाटक तैयार और पर्यवेक्षण किया गया था और इसे एमबीबीएस छात्रों द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
यूनिवर्सिटी के वाइस-चांसलर डॉ. एस. एस. मिन्हास ने बताया कि खुदकुशी करने वाले ज्यादातर लोगों की बातों या व्यवहार में कुछ हफ्तों पहले से कुछ संकेत साफ दिखते हैं। कुछ मामले तुरंत आवेग के भी होते हैं, लेकिन अधिकांश मामलों में खुदकुशी से पहले एक खास किस्म की चिंता, तनाव, हताशा या इस तरह का कोई और लक्षण जरूर दिखता है। ऐसे संकेतों को समय रहते समझा जाए और उनका निदान किया जाए।
कॉलेज के प्रिंसिपल और प्रोफेसर डॉ. रवि चंद शर्मा, जो पिछले 35 वर्षों से हिमाचल प्रदेश के लोगों की सेवा कर रहे हैं, ने इस दिन के ख़ास महत्व, इस वर्ष की थीम, व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर आत्महत्या की रोकथाम में चिकित्सा स्वास्थ्य पेशेवरों की भूमिका के बारे में अपने बहुमूल्य विचार साझा किए। आत्महत्या एक गंभीर वैश्विक समस्या है। यह एक मुद्दा इतना पेंचिदा है कि इसके पीछे कई कारक हो सकते हैं, जैसे कि मानसिक स्वास्थ्य समस्या, तनाव, अकेलापन, सामाजिक या आर्थिक दबाव आदि। इन वजहों को पहचानने के लिए और प्रभावित व्यक्ति की मदद कैसे कर सकते हैं, इस बारे में समझने के लिए इस बारे में बात करना जरूरी है, ऐसी स्थितियों से बचाव करने के लिए हर संभव मदद उपलब्ध है,जिसके बारे में लोगों में जानकारी होनी चाहिए।
यूनिवर्सिटी के चांसलर श्री तरसेम गर्ग और सचिव श्री विशाल गर्ग जी ने भी यूनिवर्सिटी में मनोचिकित्सा विभाग के सदस्यों द्वारा विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाये जाने के प्रयासों की सराहना की और कहा की हमारा लक्ष्य मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति सभी को जागरूक करके बेहतरीन इलाज की सुविधा मुहैया करवाना है, ताकि सभी लोगों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ मिल सके और लोग इस मुद्दे के बारे में खुल कर बात करने और मदद मांगने के लिए खुद को सहज महसूस कर सके।
अंत में धन्यवाद ज्ञापन मनोचिकित्सा विभाग की डॉ. रवलीन कौर जग्गी, द्वारा प्रस्तुत किया गया।