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हिमाचल विश्वविद्यालय ने आपदा के लिए बनाया डिजास्टर सेंटर, दो नामी संस्थानों के साथ MOU साइन

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हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं से लगातार हो रहे नुकसान को देखते हुए हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय (HPU) ने “कैंपस टू कम्युनिटी” मिशन के तहत डिजास्टर सेंटर की स्थापना की है। यह सेंटर आपदाओं के कारणों, बचाव और अर्ली वार्निंग सिस्टम पर काम करेगा। इसके लिए HPU ने इटली की पडोवा यूनिवर्सिटी और नॉर्वे के नॉर्वेजियन जियोटेक्निकल इंस्टीट्यूट (NGI) के साथ एमओयू साइन किए हैं। फिलहाल अध्ययन का काम प्रदेश के चार जिलों – मंडी, कुल्लू, कांगड़ा और शिमला में शुरू कर दिया गया है।

आपदाओं पर गहन अध्ययन की ज़रूरत 
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति महावीर सिंह ने पत्रकार वार्ता में कहा कि हिमालयी क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों से बादल फटने, बाढ़ और भूस्खलन जैसी घटनाओं में तेजी से इजाफा हुआ है। जहां इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, वहां ऐसी घटनाएं हो रही हैं, जो प्रदेश के लिए बड़ी चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय न सिर्फ आपदाओं पर रिसर्च करेगा, बल्कि उनके नतीजों को जमीनी स्तर पर लागू भी किया जाएगा। इसके लिए जल्द ही एक अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित की जाएगी और उसमें मिले सुझावों को व्यवहार में लाया जाएगा।

कुलपति ने बताया कि गांवों के बुजुर्गों से भी आपदा के स्थानीय अनुभवों और पारंपरिक जानकारी को शामिल किया जाएगा। वहीं स्कूल और कॉलेज स्तर पर छात्रों को जागरूक करने के लिए क्रेडिट बेस कोर्स भी शुरू किए जाएंगे। सेंटर का मुख्य फोकस अर्ली वार्निंग सिस्टम पर होगा और इसके लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद ली जाएगी।

शिमला, धर्मशाला, कुल्लू और मंडी की निगरानी
इस मौके पर Himalayan Centre for Disaster Risk Reduction and Resilience (HIM-DR3) के उपनिदेशक डॉ. महेश शर्मा ने बताया कि सेंटर वर्तमान में शिमला, धर्मशाला, कुल्लू और मंडी की मॉनिटरिंग कर रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले 10 सालों में इन क्षेत्रों में हुए धंसाव (Land Subsidence) का डेटा एकत्र किया जा रहा है। इसका वैज्ञानिक अध्ययन कर आपदाओं के कारणों और भविष्य में संभावित खतरों की पहचान की जाएगी।

AI से होगा आपदा प्रबंधन
इटली की पडोवा यूनिवर्सिटी के लैंडस्लाइड वैज्ञानिक प्रो. संसार राज मीणा ने कहा कि AI तकनीक के ज़रिए आपदाओं का बेहतर आकलन किया जाएगा। इसके लिए एडवांस्ड मशीन लर्निंग, ग्लोबल व सैटलाइट डेटा कलेक्शन जैसी अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग होगा। उन्होंने कहा कि साइंटिफिक इंफॉर्मेशन और कम्युनिटी की भागीदारी के साथ आपदाओं की समय पर पहचान और बचाव उपाय संभव हो सकेंगे।

Vishal Verma

20 वर्षों के अनुभव के बाद एक सपना अपना नाम अपना काम । कभी पीटीसी चैनल से शुरू किया काम, मोबाईल से text message के जरिये खबर भेजना उसके बाद प्रिंट मीडिया में काम करना। कभी उतार-चड़ाव के दौर फिर खबरें अभी तक तो कभी सूर्या चैनल के साथ काम करना। अभी भी उसके लिए काम करना लेकिन अपने साथियों के साथ third eye today की शुरुआत जिसमें जो सही लगे वो लिखना कोई दवाब नहीं जो सही वो दर्शकों तक