नगाली का स्कूल कभी 65 बच्चों से गूंजता था, आज शिक्षकों की कमी से सिसक रहा
गांव नगाली का सरकारी स्कूल कभी शिक्षा का एक मजबूत केंद्र हुआ करता था। 60-65 छात्र यहां पढ़ते थे, और यह स्कूल हाई स्कूल बनने की कगार पर था। लेकिन राजनीतिक कारणों से इसे वह दर्जा नहीं मिल पाया। बावजूद इसके, स्कूल का इन्फ्रास्ट्रक्चर शानदार है—6 से 8 कमरे, स्मार्ट क्लासरूम, आधुनिक सुविधाएं—सबकुछ मौजूद है। पर दुर्भाग्य से, इन कमरों में अब न तो पहले जैसी चहल-पहल है, न ही बच्चों के भविष्य संवारने वाले शिक्षक!
बंद होने की कगार से वापसी, लेकिन क्या सरकार देख रही है?
पिछले साल यह स्कूल लगभग बंद होने की स्थिति में पहुंच गया था, जब यहां सिर्फ 5 छात्र बचे थे। लेकिन गांववालों की मेहनत और शिक्षा के प्रति जागरूकता के चलते अब यह संख्या बढ़कर 14 हो गई है। यह साफ दिखाता है कि अगर सरकार थोड़ा भी ध्यान दे, तो यह स्कूल फिर से अपने पुराने गौरव को प्राप्त कर सकता है। लेकिन क्या सरकार इसे देख रही है?
चार में से तीन शिक्षक नदारद – क्या यह शिक्षा के साथ मजाक नहीं?
इस स्कूल में कुल 5 शिक्षकों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन 4 पद खाली पड़े हैं। केवल एक शिक्षक पूरे स्कूल का भार उठा रहा है। क्या यह न्यायसंगत है? क्या एक शिक्षक इतने बच्चों को उचित शिक्षा दे सकता है?
सरकार से सीधा सवाल – क्या ये बच्चे शहरों के बच्चों से कम हैं?
सरकार बड़े-बड़े दावे करती है कि हर बच्चे को समान शिक्षा मिलेगी, तो फिर यह भेदभाव क्यों? जब स्कूल में हर सुविधा मौजूद है, तो शिक्षकों की नियुक्ति क्यों नहीं हो रही? क्या सरकार तब जागेगी जब यह स्कूल फिर से बंद होने की कगार पर पहुंच जाएगा?