कड़ाके की ठंड में जली आस्था की लौ, चालदा महासू महाराज का द्राबिल आगमन
कड़ाके की ठंड से जूझती रात का वह पावन क्षण, जब तड़के करीब 3 बजे छत्रधारी चालदा महासू महाराज द्राबिल गांव पहुंचे। यह दृश्य मात्र आंखों से देखने का नहीं, बल्कि दिल से महसूस करने वाला था। ठिठुरन भरी रात, शीतल हवाएं और तापमान शून्य के करीब, बावजूद अडिग थी श्रद्धालुओं की आस्था। हजारों भक्त पूरी रात अपने आराध्य देवता के आगमन की प्रतीक्षा में पलकें बिछाए खुले आसमान के नीचे डटे रहे।जैसे ही घड़ी ने लगभग 3 बजे का समय दर्शाया और चालदा महासू महाराज की पालकी द्राबिल गांव की पावन भूमि पर पहुंची, मानो पूरा क्षेत्र भक्ति रस में डूब गया। ढोल-नगाड़ों की गूंज, जयकारों की अनुगूंज और श्रद्धा से भरी आंखों ने उस क्षण को अलौकिक बना दिया। अनुमानतः करीब 30 हजार श्रद्धालु एकत्र हुए और अपने देवता का भव्य स्वागत किया। हर चेहरा आस्था से दमक रहा था, हर हृदय में विश्वास की लौ प्रज्वलित थी।
उधर, द्राबिल में बौठा महासू देवता भी अपने भाई के स्वागत के लिए पहुंच चुके थे।
यह केवल एक देव आगमन नहीं था, बल्कि सदियों पुरानी देव परंपरा, आस्था और विश्वास की जीवंत मिसाल थी। ठंड से कांपते शरीरों के बीच श्रद्धालुओं का उत्साह और समर्पण यह दर्शा रहा था कि देव आस्था के आगे हर कठिनाई छोटी पड़ जाती है। पूरी रात जागकर, बिना किसी शिकायत के, भक्त अपने देवता के स्वागत में लीन रहे।इस ऐतिहासिक अवसर पर प्रदेश सरकार के उद्योग मंत्री हर्षवर्धन सिंह चौहान और नाहन विधानसभा क्षेत्र के विधायक अजय सोलंकी भी पूरी रात श्रद्धालुओं के बीच मौजूद रहे। दोनों जनप्रतिनिधियों ने पहले टौंस नदी पर चालदा महासू महाराज की पालकी का स्वागत किया और इसके बाद द्राबिल पहुंचने तक सड़क पर वाहन खड़ा कर भक्तों संग प्रतीक्षा करते रहे। उनका यह व्यवहार जनप्रतिनिधि और जनआस्था के बीच गहरे जुड़ाव का प्रतीक बना।हिमाचल प्रदेश के धार्मिक इतिहास में यह दिन स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो गया है। शायद ही इससे पहले आस्था का ऐसा सैलाब, ऐसी एकाग्र श्रद्धा और ऐसा दिव्य दृश्य देखने को मिला हो। चालदा महासू महाराज का द्राबिल आगमन न केवल एक धार्मिक आयोजन रहा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए आस्था, विश्वास और देव संस्कृति की अमूल्य धरोहर बन गया।
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